________________
अध्ययन १५
२९५ •rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror
विवेचन - बालक-बालिका को जन्म देते समय प्रायः माता को कष्ट होता ही है तथा बालक बालिका को भी कष्ट होता है परन्तु तीर्थङ्कर भगवान् के जन्म के समय माता को
और पुत्र को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है दोनों (माता और पुत्र) स्वस्थ नीरोग और प्रसन्नचित्त रहते हैं। ____ जंणं राई तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोग्गा-अरोग्गं पसूया, तं णं राइं भवणवइ वाणमंतर जोइसिय विमाणवासि देवेहिं च देवीहिं च उवयंतेहिं च उप्पयंतेहिं च एगे महं दिव्वे देवुजोए देवसण्णिवाए देवकहक्कहए उप्पिंजलभूए यावि होत्था। ... कठिन शब्दार्थ - उवयंतेहिं - देवलोक से भूमि पर आते समय, उप्पयंतेहिं - मेरुपर्वत पर जाते समय, देवुज्जोए - देव उद्योत, देवसण्णिवाए - देव सन्निपात, देवकहक्कहए - देवकहकहक, उप्पिंजलभूए - उत्पिंजलभूत-अट्टहास एवं उद्योत से युक्त।
भावार्थ - जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने सुखपूर्वक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को जन्म दिया उस रात्रि में भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों तथा देवियों के देवलोक से आने और मेरूपर्वत पर जाने से एक महान् दिव्य देव उद्योत हो गया, देवों के एकत्रित होने से वह रात्रि उनके कोलाहल, अट्टहास एवं उद्योत से युक्त हो गयी।
विवेचन - स्थानाङ्ग सूत्र के तीसरे ठाणे के प्रथम उद्देशक में इस प्रकार कहा गया हैयथा - "तिहिं ठाणेहिं लोगुजोए सिया, तंजहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेसु पव्वयमाणेसु, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु।" ___ अर्थ - तीर्थङ्कर भगवन्तों के जन्म के समय में दीक्षा के समय में और केवलज्ञानोत्पत्ति के समय में तीनों लोकों में उद्योत अर्थात् प्रकाश हो जाता है। इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जन्म के समय में भी केवल क्षत्रियकुण्डपुर में ही नहीं अपितु क्षण भर के लिए तीनों लोकों में प्रकाश फैल गया। सारा ही संसार यहाँ तक कि नारकीय जीव भी क्षण भर के लिये आनन्द एवं उल्हास का अनुभव करते हैं।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जन्म के पहले त्रिशला महारानी के चौदह स्वप्नों का देखना, गर्भ का परिपालन, गर्भ का हलनचलन बन्द होने से माता का आर्तध्यान करना, भगवान् महावीर द्वारा मातृपितृ भक्ति सूचक प्रतिज्ञा करना, जृम्भक देवों द्वारा सिद्धार्थ राजा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org