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________________ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिएमि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ समणाउसो ! कठिन शब्दार्थ - तिण्णाणोवगए - त्रिज्ञानोपगत- तीन ज्ञान से युक्त, साहरिजिस्सामि-. संहरण किया जाऊँगा । २९४ भावार्थ - आयुष्मन् श्रमणो ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गर्भावास में तीन ज्ञान (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान) से युक्त थे । अतः वे यह सब जानते थे कि - 'मैं इस स्थान से संहरण किया जाऊँगा, मेरा संहरण हो रहा है और मैं संहृत किया जा चुका हूँ ।" विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गर्भावास में तीन ज्ञान के धनी थे अतः वें अपने गर्भ संहरण के संबंध में हुई समस्त क्रियाओं को जानते थे । च्यवन और संहरण में बहुत अंतर है । च्यवन स्वतः होता है और संहरण परकृत । च्यवन एक समय में हो सकता है किन्तु संहरण में असंख्यात समय लगते हैं अतः अवधिज्ञांनी उसे जान सकता है। इस प्रसङ्ग पर यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि - गर्भ का संहरण करते समय गर्भ को कोई कष्ट तो नहीं होता है ? समाधान - भगवती सूत्र शतक पांच उद्देशक चार में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि गर्भ संहरण से गर्भ के जीव को कोई कष्ट नहीं होता है। यह क्रिया देव द्वारा की जाती है इसलिये गर्भस्थ जीव को किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचता है । उसे सुखपूर्वक एक गर्भ से दूसरे गर्भ में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। 1 तेणं कालेणं तेण समएणं तिसलाए खत्तियाणीए अह अण्णया कयाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाणं राइंदियाणं वीइक्कंताणं जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चित्तसुद्धस्स तेरसी पक्खेणं, हत्थुत्तराहिं जोगमुवागएणं समणं भगवं महावीरं अरोग्गा अरोग्गं पसूया । कठिन शब्दार्थ - अरोग्गं रोग रहित, पसूया प्रसूता - जन्म दिया। भावार्थ - उस काल उस समय में त्रिशला क्षत्रियाणी ने अन्यदा किसी समय नौ मास साढे सात रात्रि व्यतीत होने पर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के द्वितीय पक्ष में अर्थात् चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को सुखपूर्वक जन्म दिया। Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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