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अध्ययन १५
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी के गर्भ को देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से निकाल कर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में रखने और त्रिशला महारानी के गर्भ को देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में स्थापित करने का वर्णन है। गर्भ परिवर्तन की यह घटना आश्चर्य जनक अवश्य है परन्तु असंभव नहीं है।
दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता है कि तीर्थङ्कर भगवन्तों का गर्भ संहरण नहीं होता है किन्तु यह मान्यता उनके छद्मस्थ आचार्यों के द्वारा रचित ग्रन्थों के आधार पर है क्योंकि वीतराग भगवन्तों द्वारा प्ररूपित आचाराङ्ग आदि द्वादश वाणी को वे मान्य करते ही नहीं हैं। श्वेताम्बर परम्परा भगवान् महावीर के जीव का गर्भ संहरण को एक आश्चर्य भूत एवं संभवित घटना मानती है। इस आचाराङ्ग में ही नहीं किन्तु स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग तथा आचार्यों द्वारा रचित आवश्यक नियुक्ति और कल्प सूत्र आदि में इस गर्भ संहरण की घटना का स्पष्ट उल्लेख है। भगवती सूत्र शतक पांच उद्देशक तेतीस में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी फरमाते हैं - "गोयमा! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा।" अर्थात् हे गौतम! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है।
- वैदिक परम्परा के मुख्य पुराण श्रीमद् भागवत में भी गर्भ परिवर्तन का उल्लेख मिलता है कि जब कंस वसुदेव की सन्तानों को नष्ट कर देना चाहता था तब विश्वात्मा योग माया को आदेश देता है कि देवकी रानी का गर्भ रोहिणी के उदर में रखे तब विश्वात्मा के आदेश निर्देश से योग माया देवकी का गर्भ रोहिणी के गर्भ में रख देती है।
वर्तमान कालीन वैज्ञानिकों ने भी परीक्षण करके गर्भ परिवर्तन को संभव माना है और अनेकों बार उन्होंने ऐसा किया भी है। - स्थानाङ्ग सूत्र के दसवें ठाणे में दस आश्चर्यों का वर्णन किया गया है। उसमें भगवान् महावीर स्वामी के जीव के गर्भ संहरण का भी उल्लेख है इस प्रकार के आश्चर्य कभीकभी अनन्त काल से अवसर्पिणी काल में ही हुआ करते हैं। जब होते हैं तब इसी प्रकार के दस आश्चर्यों में से कभी कम और यावत् कभी उत्कृष्ट दस ही आश्चर्य हो जाते हैं, दस से अधिक नहीं। इस अवसर्पिणी काल में दसों ही आश्चर्य हुए थे। कभी कभी होने के कारण जनता में यह आश्चर्य रूप माने जाते हैं। ये असंभव घटनाएँ नहीं हैं परन्तु आश्चर्यकारी अवश्य है। इस अवसर्पिणी काल को दसों ही आश्चर्य हो जाने के कारण हुण्डावसर्पिणी (विकृष्ट अवसर्पिणी) कहते हैं।
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