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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ..................................................... यह तरीका अशुद्ध है। चाहे सम्मिलित गुणा करे, चाहे अलग-अलग गुणा करे तो भी गुणन फल एक ही आना चाहिए वही तरीका शुद्ध और सही है।
तओ णं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपएणं देवेणं जीयमेयं त्ति कट्ट जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोय बहुले तस्स णं आसोय बहुलस्स तेरसी पखेणं हत्थुत्तराहिं णखत्तेणं जोगमुवागएणं बासीहिं राइदिएहिं वीइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुरसंणिवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसंसि णायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्टसगुत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करित्ता, सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करित्ता कुच्छिंसि गब्भं साहरड, जे वि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिंसि गब्भे तं पि य दाहिणमाहणकुंडपुरसंणिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण गोत्ताए कुच्छिंसि गब्भं साहरइ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - हियाणुकंपएणं - हित और अनुकम्पा से, एयं - यह, जीयं - जीताचार, वासाणं - वर्षा काल का, तेरसी पक्खेणं - त्रयोदशी के दिन, राइदिएहि - अहोरात्र-रातदिन के, णायाणं - ज्ञातवंशीय, वासिङसगुत्ताए - वाशिष्ठ गोत्रीय, खत्तियाणीएक्षत्रियाणी, अवहार - हटाना, दूर करना, पक्खेणं - प्रक्षेप करने से, साहरइ - संहरण करता है, स्थापित करता है। • . भावार्थ - देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आने के बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के हित और अनुकम्पा करने वाले हरिणैगमिषी देव ने 'यह मेरा जीत आचार है' ऐसा सोच कर वर्षा काल के तीसरे मास, पांचवें पक्ष अर्थात् आश्विन कृष्णा त्रयोदशी.के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर ८२ रात्रि दिन व्यतीत होने और ८३ वें दिन की रात को दक्षिण ब्राह्मण कुंडपुर सनिवेश से उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश में ज्ञात वंशीय क्षत्रियों में प्रसिद्ध काश्यप गोत्रीय सिद्धार्थ राजा की वाशिष्ठ गोत्रीय पत्नी त्रिशला. महारानी के गर्भ के अशुभ पुद्गलों को हटा कर उनके स्थान पर शुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करके उसकी कुक्षि में उस गर्भ को रखा और त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में जो गर्भ था उसे लेकर दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालन्धर गोत्रीय देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में स्थापित किया।
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