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________________ २९६ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .00000000000000000000000000000000000000000000000000000000 के भवन में निधानों का संग्रह करना, धन-धान्य आदि की वृद्धि के कारण माता-पिता द्वारा वर्द्धमान नाम रखने का विचार। सिद्धार्थ राजा द्वारा हर्षवश पारितोषिक देना, प्रीतिभोज करना आदि बातों का वर्णन टीका ग्रन्थों में है। जं णं रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोग्गा-अरोग्गं पसूया तं णं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च, गंधवासं च, चुण्णवासं च, पुप्फवासं च, हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु॥ कठिन शब्दार्थ - अमयवासं - अमृत वर्षा, रयणवासं - रत्न वर्षा, वासिंसु - वृष्टि की। भावार्थ - जिस रात्रि को त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को सुख पूर्वक जन्म दिया उस रात्रि को बहुत से देवों और देवियों ने एक बड़ी भारी अमृत वर्षा, सुगंधित पदार्थों की वर्षा और चूर्ण, पुष्प, चांदी सोना और रत्नों की वृष्टि की। विवेचन - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के जन्म के समय सर्वत्र महाप्रकाश हुआ और चारों जाति के देवों के मन में हर्ष एवं उल्लास छा गया। प्रभु के जन्म पर हर्ष विभोर होकर उन्होंने अमृत, सुगंधित पदार्थ, चाँदी सोना एवं रत्नों आदि की,वर्षा की। ___जंणं रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोग्गा-अरोग्गं पसूया, तं णं रयणिं भवणवइ वाणमंतर जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सुइकम्माइं तित्थयराभिसेयं च करिसु। कठिन शब्दार्थ - सुइकम्माई - शुचि कर्म, तित्थयराभिसेयं - तीर्थंकराभिषेक। भावार्थ - जिस रात्रि को त्रिशला महारानी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को सुखपूर्वक जन्म दिया उस रात्रि को भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देव तथा देवियों ने श्रमण भगवान् महावीर का शुचिकर्म और तीर्थंकराभिषेक किया। . .. - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भगवान् के जन्मोत्सव का उल्लेख किया गया है। भगवान् का जन्म होने पर छप्पन दिशा कुमारियों ने भगवान् का जन्म महोत्सव मनाया और शुचि कर्म किया तथा चोसठ इन्द्रों ने भगवान् को मेरु पर्वत के पण्डक वन में ले जाकर उनका जन्माभिषेक किया, इसका विस्तृत वर्णन जम्बूद्वीप पण्णत्ति सूत्र के पांचवें वक्षस्कार में है। जओ णं पभिड भगवं महावीरे तिसलाए खत्तियाणीए कच्छिंसि गब्भं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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