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अध्ययन १३
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७. सिया से परो कार्य अण्णयरेण धूवणजाएण धूविज वा पधूविज वा णो तं सायए णो तं णियमे॥ ____ भावार्थ - १. कदाचित् कोई गृहस्थ पुरुष या स्त्री साधु साध्वी के शरीर को एक बार या बार-बार पोंछ कर साफ करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से कराए।
२. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर को एक बार या बार-बार दबाए तथा विशेष रूप से मर्दन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे, न वचन और काया से कराए।
. ३. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर तेल, घी, नवनीत या वसा चुपडे, मसले या मालिश करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए। ___४. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण का उबटन करे, लेपन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए।
५. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर को प्रासुक ठंडे जल से या गर्म जल से धोए या बार-बार अच्छी तरह से धोए तो साधु साध्वी उसे मन से न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए। .
६. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर किसी प्रकार का विलेपन एक बार करे अथवा बार-बार विलेपन का लेप करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी चाहे और न वचन एवं काया से भी न कराए।
७. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर को किसी प्रकार के सुगन्धित धूप से धूपित या प्रधूपित करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से
कराए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु साध्वी के लिए काय (शरीर) परिकर्म रूप परक्रिया का सर्वथा निषेध किया गया है। गृहस्थ से ऐसी काय परिकर्म रूप परिचर्या कराने से अनेक प्रकार के दोष लगने की संभावनाएँ रहती हैं। .
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