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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .
१०. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों में लगे हुए खूटे या कांटे आदि को निकाले या उसे शुद्ध करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए।
११. कदाचित् यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के पैरों में लगे रक्त और मवाद को निकाले या उसे निकाल कर शुद्ध करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए।
विवेचन - "पर" अर्थात् गृहस्थ पुरुष या स्त्री के द्वारा साधु साध्वीं के शरीर पर की जाने वाली परिचर्या या क्रिया-चेष्टा, व्यापार या कर्म, परक्रिया कहलाती है। ऐसी पर-क्रिया कराना साधु साध्वी के लिए मन, वचन और काया से निषिद्ध है। परक्रिया कर्म बंध का कारण तब होती है जब गृहस्थ के द्वारा की जाते समय साधु साध्वी उसमें रुचि ले, मन से चाहे या कह कर कराले या कायिक संकेत द्वारा करावे। अतः साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए। प्रस्तुत सूत्र में गृहस्थ द्वारा की जाने वाली दस प्रकार की पाद (पैर) परिकर्म रूप परक्रिया का निषेध किया है। ___ १. सिया से परो कायं आमजिज वा पमजिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
२. सिया.से परो कायं लोहेण वा संवाहिज वा पलिमहिज वा णो तं सायए णोतं णियमे।
३. सिया से परो कार्य तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा मक्खिज वा अब्भंगिज वा णो तं सायए णो तं णियमे। . । ४. सिया से परो कायं लोहेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोडिज वा उव्वलिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
. ५. सिया से परो कार्य सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज वा पहोइज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
६. सिया से परो कार्य अण्णयरेणं विलेवणजाएणं आलिंपिज वा विलिंपिज्ज वा, णोतं सायए, णो तं णियमे।
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