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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000..
१. सिया से परो कार्यसि वणं आमजिज वा पमजिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
२. सिया से परो कार्यसि वणं संवाहिज वा पलिमहिज वा णो तं सायए णोतं णियमे।
३. सिया से परो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा मक्खिज वा अब्भंगिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
४. सिया से परो कार्यसि वणं लोहेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोढिज वा उव्वलिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
५. सिया से परो कार्यसि वणं सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिज वा पहोहिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
६. सिया से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं विलेवणजाएणं आलिंपिज वा विलिपिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
७. सिया से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं धूवणजाएणं धूविज वा पधूविज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
८. सिया से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं संस्थजाएगं अच्छिंदिज वा विच्छिंदिज वा णो तं सायए णो तं णियमे॥
९. सिया से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं सत्थजाएणं अच्छिंदित्ता वा विच्छिंदित्ता वा पूर्व वा सोणियं वा णीहरिज वा णो तं सायए णो तं णियमे॥ . कठिन शब्दार्थ - वर्ण - व्रण (घाव) को, सत्थजाएणं - शस्त्र विशेष से।
भावार्थ - १. कदाचित् कोई गृहस्थ पुरुष या स्त्री साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण (घाव-फोडे) को एक बार पोंछे या बार-बार पोंछ कर साफ करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से उसे कराए।
२. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए व्रण को दबाएं या अच्छी तरह से दबा कर मर्दन करे तो साधु साध्वी मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
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