________________
अध्ययन १ उद्देशक १
प्राणा: द्वित्रिचतुः प्रोक्ताः, भूतास्तु तरवः स्मृताः ।
जीवाः प्रचेन्द्रियाः प्रोक्ताः, शेषाः सत्त्वाः उदीरिता ॥ १ ॥
अर्थ १. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय को 'प्राण' कहते हैं । २. वनस्पति को भूत कहते हैं। ३. पंचेन्द्रिय को 'जीव' कहते हैं । ४. बाकी शेष अर्थात् पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय इनको 'सत्त्व' कहते हैं ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं जाव पविट्ठे समाणे से जं पुण जाणिज्जा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए पगणिय पगणिय समुद्दिस्स पाणाई वा भूयाई वा जीवाई वा सत्ताइं वा समारब्ध जाव णो पडिग्गाहिज्जा ॥ ७ ॥
-
कठिन शब्दार्थ - बहवे - बहुत से, समण - शाक्यादि श्रमण, माहण ब्राह्मण, अतिहि - अतिथि, क़िवण - कृपण-द्ररिद्र, वणीमए - भिखारी, पगणिय पगणिय गिन-गिन कर । भावार्थ - साधु या साध्वी भिक्षार्थ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होकर ऐसा जाने कि - यह आहार बहुत से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र अथवा भिखारियों आदि के लिए गिन-गिन कर प्राणी भूत, जीव और सत्त्वों का आरंभ समारंभ करके बनाया हो ऐसा आहार उन्होंने ग्रहण किया हो अथवा न भोगा हो तो भी उसको अप्रासुक और अनेषणीय मानकर साधु या साध्वी आहार आदि का लाभ होने पर भी ग्रहण न करे ।
.. विवेचन प्रश्न मूल पाठ में समण, माहण आदि शब्द दिये हैं इनका क्या अर्थ
है ?
-
-
-
Jain Education International
१५
उत्तर - यहाँ समण शब्द से पांच प्रकार के श्रमण बतलाये गये हैं । यथा १. निर्ग्रन्थ (जैन साधु) २. शाक्य (बौद्ध भिक्षु ) ३. तापस (अग्नितप से तपने वाले संन्यासी) ४. गैरिक ( गेरुवाँ भगवां रंग के वस्त्र पहनने वाले परिव्राजक) ५. आजीविक ( गोशालक मतानुयायी साधु) ।
माहण का अर्थ है ब्राह्मण । अतिथि अर्थात् दरिद्री । वणीपक
-
-
बाहर ग्रामादि से आया हुआ भिखारी, वणीपक के पांच भेद हैं १ अतिथि- वनीपक
कृपण
२. कृपण वनीपक ३. ब्राह्मण वनीपक ४. श्वा (कुत्ता) वनीपक ५. श्रमण वनीपक । वनीपक का अर्थ है अपनी दीनता बता कर या दाता की प्रशंसा करके भिक्षा मांगने वाला ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org