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________________ अध्ययन ९ २४९ यहां पर ठहरूंगा। शेष वर्णन दूसरे शय्या अध्ययन के अनुसार जानना चाहिये यावत् जहां पर उदकप्रसूत-पानी से उत्पन्न वनस्पति कन्दादि हो वहां पर न ठहरे। वास्तव में निषीधिका (स्वाध्याय भूमि) की अन्वेषणा तभी की जाती है, जब आवास स्थान संकीर्ण छोटा, खराब या स्वाध्याय-ध्यान के योग्य न हो। उस स्वाध्याय भूमि में गए हुए दो, तीन, चार या पांच साधु परस्पर शरीर का आलिंगन न करें, विशेष रूप से आलिंगन न करें, मुख चुम्बन न करें, दांतों से या नखों से शरीर का छेदन भी न करें और जिससे विशेष मोहानल-मोह रूपी अग्नि प्रदीप्त हो इस प्रकार की पारस्परिक कुचेष्टा न करें। जिस प्रकार साधु के लिये कहा है वैसे साध्वी, साध्वी के परस्पर इन कुचेष्टाओं का निषेध समझ लेना चाहिए। यही साधु साध्वियों का समग्र आचार है। जो सर्व अर्थों से सहित है, पांच समितियों से युक्त है इसमें सदा संयम पालन करने में यत्नशील हो तथा इस आचार का पालन करना श्रेय है-कल्याण रूप है इस प्रकार माने। इस प्रकार मैं कहता हूँ। विवेचन - शोभन रीति से मर्यादा पूर्वक अस्वाध्याय काल का परिहार करते हुए शास्त्र का अध्ययन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय के पांच भेद हैं - - १. वाचना - शिष्य को सूत्र अर्थ का पढ़ाना वाचना है। २. पृच्छना - वाचना ग्रहण करके संशय होने पर पुनः पूछना पृच्छना है। या पहले सीखे हुए सूत्रादि ज्ञान में शंका होने पर प्रश्न करना पृच्छना है। ३. परिवर्त्तना - पढ़े हुए भूल न जाय इसलिये उन्हें फेरना परिवर्तना है। .. ४. अनुप्रेक्षा - सीखे हुए सूत्र के अर्थ का विस्मरण न हो जाय इसलिये उसका बार बार मनन करना अनुप्रेक्षा है। ५. धर्मकथा - उपरोक्त चारों प्रकार से शास्त्र का अभ्यास करने पर भव्य जीवों को शास्त्रों का व्याख्यान सुनाना धर्मकथा है। ... साधक को अपने योगों को अन्य प्रवृत्तियों से हटा कर आत्म-साधना की ओर लगाना चाहिये और इसके लिए उसे सर्वथा निर्दोष प्रासुक एवं शान्त-एकान्त स्थान में स्वाध्याय करनी चाहिये। ॥द्वितीय सप्तिका समाप्त॥ . ॐ निषाधिका नामक नववा अध्ययन समाप्त ॐ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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