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________________ द्वितीय सप्तिका निषीधिका नामक नववां अध्ययन आठवें अध्ययन में कायोत्सर्ग का वर्णन करने के बाद सूत्रकार ने इस नववें अध्ययन में स्वाध्याय विषयक वर्णन किया है। स्वाध्याय भूमि कैसी हो ? और साधक को किस तरह स्वाध्याय में संलग्न रहना चाहिये ? इसका स्पष्टीकरण देते हुए सूत्रकार फरमाते हैं - सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा णिसीहियं फासूयं गमणाए, से जं पुण णिसीहियं जाणिज्जा - सअंडं सपाणं जाव मक्कडासंताणयं तहप्पगारं णिसीहियं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णो चेइस्सामि ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा णिसीहियं गमणाए, से जं पुण णिसीहियं जाणिज्जा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं जाव मक्कडासंताणयं तहप्पगारं णिसीहियं फासूयं एसणिज्जं लाभे संते चेइस्सामि, एवं सिज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदयप्पसूयाई ॥ जे तत्थ दुवग्गा तिवग्गा चउवग्गा पंचवग्गा वा अभिसंधारिति णिसीहियं गमणाए ते णो अण्णमण्णस्स कायं आलिंगिज्ज वा विलिंगिज्ज वा चुंबिज्ज वा दंतेहिं वा हेहिं वा अच्छिंदिज्ज वा वुच्छिंदिज्ज वा । एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं सहिए समसया जज्जा सेयमिणं मण्णिजासि त्ति बेमि ॥ १६४ ॥ ।। णिसीहिया सत्तिक्कयं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - अभिसंधारिति सन्मुख होते हों, दुवग्गा द्वि वर्ग-दो साधु, आलिंगिज्ज - आलिंगन करे, विलिंगिज्ज विशेष रूप से आलिंगन करे, चुंबिज्ज - चुम्बन करे। भावार्थ - जो साधु या साध्वी प्रासुक - निर्दोष स्वाध्याय भूमि में जाने की इच्छा रखते हों वे स्वाध्याय भूमि के बारे में जाने। जो स्वाध्याय भूमि अण्डे यावत् मकडी के जालों से युक्त हैं उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर गृहस्थ से कहे कि मैं इस प्रकार की भूमि में नहीं ठहरूंगा अर्थात् मैं इसका उपयोग नहीं करूंगा। जो स्वाध्याय भूमि अंडे प्राणी, बीज यावत् मकडी के जालों आदि से रहित हैं उसे प्रासुक और एषणीय जान कर कहे कि मैं Jain Education International - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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