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अध्ययन ५ उद्देशक १
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उसयालंसि वा कामजलंसि वा अण्णयरे तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्ध दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयाविज वा णो पयाविज्ज वा॥
कठिन शब्दार्थ - अणंतरहियाए - सचित्त (आर्द्र) पृथ्वी पर, संताणए - मकडी के जाले आदि से युक्त स्थान पर, थूणंसि - स्थूणा-स्तंभ खूटी आदि पर, गिहेलुयंसि - घर की देहली (थली-थलकन) पर, उसुयालंसि - ऊखल पर, कामजलंसि - स्नानपीठ-चौकी पर, अंतलिक्खजाए - अंतरिक्षजात-अंतरिक्षस्थान पर, दुब्बद्धे - दुर्बद्ध-अच्छी तरह से बंधा हुआ नहीं है, दुण्णिक्खित्ते - दुर्निक्षिप्त-जो अच्छी तरह से भूमि पर स्थापित न किया गया हो, अणिकंपे - अनिष्कंप-निश्चल नहीं, चलाचले - चलाचल।
भावार्थ - वह साधु या साध्वी यदि वस्त्र को धूप में सूखाना चाहे तो वह वस्त्र को सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध पृथ्वी पर, तथा ऊपर से सचित्त मिट्टी गिरती हो ऐसी पृथ्वी पर, सचित्त शिला पर, सचित्त मिट्टी के ढेले यावत् मकडी के अण्डों और जालों से युक्त जमीन पर न सूखावे। वस्त्र को स्तंभ, खूटी आदि पर, घर की देहली (थली-थलकन) पर या ऊखल पर, स्नान की चौकी पर तथा अन्य लथाप्रकार के अंतरिक्ष भूमि से ऊँचे स्थान पर जो दुर्बद्ध-भलीभांति बांधा हुआ नहीं है, दुर्निक्षिप्त-जो अच्छी तरह से भूमि पर स्थापित न किया गया हो तथा कंपनशील और चलाचल हो, वहाँ वस्त्र को आताप या परिताप न दे अर्थात् एक बार सूखावे नहीं या बारबार सूखावे नहीं। - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा वत्थं आयावित्तए वा पयावित्तए वा तहप्पगार वत्थं कुलियसि वा भित्तंसि वा सिलसि वा लेलुंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खाए जाव णो आयाविज वा पयाविज वा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा वत्थं आयावित्तए वा पयावित्तए वा तहप्पगारं वत्थं खंधसि वा मंचंसि-मालंसि-पासायंसि-हम्मियतलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए जाव णो आयाविज वा पयाविज वा॥ से तमायाए एगतमवक्कमिजा एगतमवक्कमित्ता अहे झाम थंडिलंसि वा जाव अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेंहिय पमजिय पमज्जिय तओ संजयामेव वत्थं आयाविज वा पयाविज वा।
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