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________________ २१२ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ......000000000000000000000000000000000000000000000000000 एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं सया जइजासि त्ति बेमि॥१४८॥ ॥वत्थेसणस्स पढमो उद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - कुलियंसि - घर की दीवार पर, भित्तंसि - नदी के तट पर, सिलसि - शिला पर, लेलुंसि- शिला खंड पर, अहे-अथ, झामथंडिलंसि-दग्ध अर्थात् अचित्त बनी हुई भूमि पर। भावार्थ - साधु या साध्वी यदि वस्त्र को धूप में सूखाना चाहे तो घर की दीवार पर, नदी के तट पर, शिला पर, शिला खंड पर, स्तंभ पर, मंच पर, माले पर, प्रासाद और प्रासाद विशेष पर अथवा अन्य इसी प्रकार के अंतरिक्ष जात-ऊंचे स्थानों पर जो कि दुर्बद्ध, दुनिक्षिप्त, कंपित एवं चलाचल हो वहाँ पर नहीं सूखावें। यदि सूखाना हो तो वस्त्र को लेकर एकान्त स्थान में जाए, एकान्त स्थान में जाकर जो भूमि अग्नि दग्ध हो यावत् इसी प्रकार की अन्य निरवद्य निर्दोष अचित्त भूमि की प्रतिलेखना और प्रमार्जना कर के यतना पूर्वक वस्त्र को सूखाए। ___ यही साधु साध्वी का समग्र-संपूर्ण आचार है जिसका पालन करने के लिये सदा यत्नशील रहे- ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जीवादि युक्त सचित्त स्थान एवं ऊँचे स्थानों पर वस्त्र को सूखाने का निषेध किया है क्योंकि ऐसे स्थानों पर हवा के झोकों से वस्त्र के गिरने या उसके हिलने डूलने से वायुकायिक एवं अन्य जीवों की विराधना होने की संभावना रहती है। अतः संत-सती को ऐसे ऊँचे स्थानों पर वस्त्र नहीं सूखाना चाहिए, जो अच्छी तरह से बन्धा हुआ नहीं है, निश्चल नहीं है, चलायमान है। स्पष्ट है कि साधु साध्वी को प्रासुक एवं निर्दोष भूमि पर ही वस्त्र सूखाने चाहिये ताकि किसी भी प्राणी की विराधना न हो। उपर्युक्त सूत्रों में बहुत दिनों तक वस्त्र धोने के साधु-साध्वियों के लिए निषेध किया गया है। एक-दो दिन के लिए नहीं तथा अंतिम के कुछ सूत्रों में वस्त्रों को सूखाने की विधि भी बताई है। इन आगम पाठों से यह स्पष्ट होता है कि साधु-साध्वी आवश्यकता होने पर आगमोक्त विधि निषेधों का ध्यान रखते हुए वस्त्रों को धो सकते हैं। ॥पांचवें अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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