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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •••••••••••••••••••••••.......................krrrrrrror को मारना नहीं पड़ता है। इसे टसर का रेशम कहते हैं यह रूई की तरह होता है और उसी तरह कातकर इसका धागा बनाया जाता है इसे भी भंगिय वस्त्र कह सकते हैं, इस प्रकार का अथवा अलसी का बना हुआ वस्त्र साधु साध्वी ग्रहण कर सकते हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयणमेराए वत्थ पडियाएं णो अभिसंधारिजा गमणाए ॥१४२॥
कठिन शब्दार्थ - अद्धजोयणमेराए - आधे योजन की मर्यादा से, परं - आगे, अभिसंधारिज्जा - विचार करे।
भावार्थ - साधु या साध्वी वस्त्र याचना करने हेतु आधे योजन की मर्यादा से आगे जाने का विचार न करे।।
विवेचन - आग़म में जैसे साधु साध्वी को आधे योजन से आगे जाकर आहार पानी लाने का आगमों में निषेध किया गया है (बृहत्कल्प सूत्र ४, १२, भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक १) वैसे ही क्षेत्र की मर्यादा का उल्लंघन कर अर्थात् आधे योजन से आगे जाकर वस्त्र ग्रहण करने का भी निषेध किया गया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण वत्थं जाणिज्जा अस्सिं (अस्सं) पडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई जहा पिंडेसणाए भाणियव्वं । एवं बहवे साहम्मिया, एगं साहम्मिणिं, बहवे साहम्मिणीओ, बहवे समण, माहण, अतिहि, किवण, वणीमग तहेव पुरिसंतरकडं जहा पिंडेसणाए॥१४३॥
कठिन शब्दार्थ - साहम्मियं - साधर्मिक को, समुद्दिस्स - उद्देश्य कर, पुरिसंतरकडंपुरुषान्तर कृत।
भावार्थ - साधु या साध्वी वस्त्र के विषय में यह जाने कि कोई गृहस्थ पंच महाव्रतधारी निर्ग्रन्थ साधु साध्वी को देने की प्रतिज्ञा से किसी एक या अनेक साधु साध्वियों के उद्देश्य से प्राणियों आदि की हिंसा करके वस्त्र तैयार करे तो साधु साध्वी उसे ग्रहण नहीं करे। यदि वह अन्य बहुत से शाक्य आदि श्रमणों के लिए तैयार किया हो और पुरुषान्तर कृत हो गया हो तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। यह सारा विषय पिण्डैषणा अध्ययन की तरह समझना चाहिये।
पिण्डैषणा अध्ययन में जैसे एक साधर्मिक साधु एवं बहुत से साधर्मिक साधु, इसी
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