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अध्ययन ५ उद्देशक १
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भावार्थ - साधु अथवा साध्वी वस्त्र की गवेषणा करनी चाहें तो वे वस्त्र के विषय में इस प्रकार जाने कि-ऊँट, भेड आदि की ऊन से बना हुआ, विकलेन्द्रिय जीवों की लारों से बना हुआ, सन तथा वल्कल आदि से बना हुआ, ताड आदि के पत्तों से बना हुआ, कपास आदि से बना हुआ और आक आदि की रूई से बना हुआ वस्त्र तथा इसी प्रकार के अन्य वस्त्र को मुनि ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ तरुण-युवावस्था में है तथा तीसरे या चौथे आरे का जन्मा हुआ है अथवा समय के उपद्रव से रहित बलवान्, रोग रहित और दृढ़ संहनन वाला है वह एक ही वस्त्र को धारण करे, दूसरा वस्त्र धारण न करे। जो साध्वी है वह चार संघाटिका-चादरें (साडियाँ) धारण करे। उसमें एक चादर दो हाथ चौड़ी परिमाण वाली, दो चादरें तीन हाथ चौड़ी परिमाण वाली और एक चादर चार हाथ चौड़ी परिमाण वाली लम्बी होनी चाहिए। इस प्रकार के एक वस्त्र के न मिलने पर एक वस्त्र को दूसरे के साथ सी ले अर्थात् जोड़ ले।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु साध्वी १. जांगमिक २. भांगिक ३. सानिक ४. पोतक ५. क्षोमिक और ६. तूलकृत इन छह प्रकार के वस्त्रों में से किसी प्रकार का वस्त्र ग्रहण कर सकते हैं। युवक, नीरोगी, शक्ति संपन्न और हृष्ट पुष्ट शरीर वाला साधु एक ही वस्त्र ग्रहण करे, दूसरा नहीं। साध्वी के लिए चार चादरों का विधान किया गया है उसमें से उपाश्रय में रहते समय दो हाथ चौड़ी चादर, गोचरी एवं जंगल आदि जाते समय तीन हाथ चौड़ी चादर का एवं व्याख्यान के समय चार हाथ परिमाण वाली चौड़ी चादर का उपयोग करना चाहिये।
स्थानाङ्ग सूत्र और बृहत्कल्प सूत्र आदि में भी साधु साध्वी द्वारा ग्रहण करने योग्य वस्तुओं का उल्लेख किया गया है। यद्यपि यहां छह प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है किन्तु वर्तमान में साधु साध्वी प्रायः सूती और ऊनी वस्त्र ही धारण करते हैं। यहाँ एक वस्त्र धारण करने का उल्लेख किया है। प्राचीन धारणा के अनुसार गिनती की अपेक्षा एक वस्त्र नहीं किन्तु जाति की अपेक्षा एक ही जाति के वस्त्र समझने चाहिए क्योंकि गौतम स्वामी, सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी आदि के भी गिनती की अपेक्षा अनेक (साधु की मर्यादा अनुसार) परन्तु जाति की अपेक्षा एक का उल्लेख मिलता है। .
रेशमी वस्त्र जिसके लिये कीड़ों को मारा जाता है वह तो साधु साध्वी को ग्रहण करना उचित ही नहीं है किन्तु आजकल एक ऐसा वस्त्र मिलने लगा है जिसके लिये कीड़ों
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