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- आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध orrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.. भिक्षावृत्ति से निर्वाह करने वाले-भिक्षाजीवी, पसिणाणि - प्रश्न, णो - न, वागरिजा - उत्तर देवे।
भावार्थ - ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक मिले और पूछे कि-हे आयुष्मन् श्रमण! यह ग्राम या शहर कैसा है? यावत् यह राजधानी कैसी है ? यहाँ कितने हाथी, घोडे, भिक्षाजीवी और मनुष्य निवास करते हैं ? इस गांव अथवा राजधानी में भोजन, पानी, मनुष्यों और धान्यादि की बहुलता है अथवा कमी है? ऐसे प्रश्नों के पूछने पर साधु साध्वी उनका उत्तर न दे किन्तु मौन रहे और न ही ऐसे प्रश्न पूछे। यह साधु-साध्वियों का सम्पूर्ण आचार है।
॥तृतीय अध्ययन का दूसरा उद्देशक समाप्त॥
तृतीय अध्ययन का तीसरा उद्देशक से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा जाव दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासायाणि वा, णूमगिहाणि वा, रुक्खगिहाणि वा, पव्वयगिहाणि वा, सक्खं वा, चेइयकडं थूभं वा, चेइयकडं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय अंगुलियाए उद्दिसिय उदिसिय ओणमिय ओणमिय उण्णमिय उण्णमिय णिज्झाइज्जा। तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - कूडागाराणि - कूटागार-पर्वत के ऊपर बने हुए घर, णूमगिहाणिभूमि घर-तहखाना, रुक्खगिहाणि - वृक्ष के नीचे बने घर, चेइयकडं - वृक्ष के नीचे का व्यन्तर देव स्थान, थूभं - व्यंतरादि देव का स्तूप।
भावार्थ - साधु साध्वी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मार्ग में किसी गुफा, पर्वत पर बने गृह (घर), प्रासाद, भू गृह (भूमि घर), वृक्षों के नीचे बने निवास स्थान, व्यंतर देव का स्थान, व्यंतर देव का स्तूप, व्यंतरायतन, धर्मशालाओं आदि को भुजा ऊपर उठाकर, अंगुलियों को फैलाकर, ऊंचा नीचा होकर न देखे, किंतु यतना पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से कच्छाणि
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