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________________ अध्ययन ३ उद्देशक २ १६७ ......................................................... हो और मार्ग अवरुद्ध हों तो अन्य मार्ग के होने पर यतना पूर्वक दूसरे मार्ग से ही जाय, सदोष सरल रास्ते से न जाय। से णं परो सेणागओ वइज्जा-आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिणिवारियं करेइ, से णं बाहाए गहाय आगसह से णं परो बाहाहिं गहाय आगसिज्जा, तं णो सुमणे सिया जाव समाहीए तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥१२५॥ कठिन शब्दार्थ - सेणागओ.- सेनागत-सेना का कोई पुरुष, अभिणिवारियं - गुप्तचरीजासूसी, आगसह - खींचो। भावार्थ - कदाचित् अन्य मार्ग के न मिलने पर उसी मार्ग से जाना पडे, उस समय कोई सैनिक दूसरे सैनिक से इस प्रकार कहे कि हे आयुष्मन् ! यह साधु सेना की जासूसी करता है अर्थात् यह सेना का भेद लेने के लिए आया हुआ है अतः इसे भुजाओं से पकड़ कर खींचो अर्थात् हटा दो तदनुसार कोई हाथ पकड़ कर खींचे, धक्का देकर निकाल दे तो साधु किसी प्रकार हर्ष-शोक (राग-द्वेष) न करे किन्तु समाधि पूर्वक वहाँ से चला जाय अर्थात् ग्रामानुग्राम विहार करे। विवेचन - साधु को वनस्पतिकाय की हिंसा न करते हुए एवं विषम मार्ग तथा सेना से युक्त रास्ते का त्याग करके सम मार्ग से विहार करना चाहिये जिससे स्व और पंर की विराधना न हो। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छिज्जा ते णं पाडिपहिया एवं वइज्जा आउसंतो समणा! केवइए एस गामे वा जाव रायहाणी वा? केवइया एत्थ आसा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति? से बहुभत्ते, बहुउदए, बहुजणे, बहुजवसे? से अप्पभत्ते, अप्पुदए, अप्पजणे अप्पजवसे? एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो णो आइक्खिज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णो पुच्छिज्जा॥ . एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॥ १२६॥ ॥बीओद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - आसा - अश्व, हत्थी - हाथी, गामपिंडोलगा - ग्राम याचक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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