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अध्ययन ३ उद्देशक ३
१६९ ......................................................... वा, दवियाणि वा, णूमाणि वा, वलयाणि वा, गहणाणि वा, गहणविदुग्गाणि वा, वणाणि वा, वणविदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयविदुग्गाणि वा, अगडाणि वा, तलागाणि वा, दहाणि वा, णईओ वा, वावीओ वा, पुक्खरिणीओ वा, दीहियाओ वा गुंजालियाओ वा, सराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय जाव णिज्झाइज्जा। केवली बूया आयाणमेयं। जे तत्थ मिगा वा, पसू वा, पक्खी वा, सरीसिवा वा, सीहा वा, जलचरा वा, थलचरा वा, खहचरा वा सत्ता ते उत्तसिज्ज वा वित्तसिज्ज वा वाडं वा सरणं वा कंखिज्जा, चारित्ति मे अयं समणे। अह भिक्खुणं पुव्वोवइट्ठा एस पइण्णा जाव जं णो बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय जाव णिज्झाइज्जा। तओ संजयामेव आयरियउवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जिज्जा॥१२७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - कच्छाणि - कच्छ-नदी के समीपवर्ती निम्न प्रदेश, दवियाणि - वन में घासादि के लिये राजादि द्वारा आरक्षित भूमि, णूमाणि - खड्डा (गर्त) आदि, वलयाणिनदी आदि से घिरे हुए प्रदेश, गहणाणि - निर्जल प्रदेश-अरण्य क्षेत्र, गहणविदुग्गाणि - निर्जल प्रदेश में स्थित दुर्गम किले आदि, वणविदुग्गाणि - वन में स्थित किले (दुर्गम स्थान) दीहियाओ - दीर्घिकाओं-लम्बी बावडियों, गुंजालियाओ - गुंजालिका-दीर्घ गंभीर टेढी मेढी जल की वापिकाएं, सरसरपंतियाणि - सरोवरों की पंक्तियों को, मिगा - मृग, पसू - पशु, पक्खी - पक्षी, सरीसिवा - सांप, सीहा - सिंह, उत्तसिज्ज - त्रास को प्राप्त करें, वित्तसिज्ज - विशेष रूप से त्रास को प्राप्त करें, वाडं - बाड की, सरणं- शरण (आश्रय) को, वारित्ति- भगाना, चारित्ति - चलाना।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मार्ग में आये हुए नदी के समीपवर्ती निम्न प्रदेश, घास के जंगल, खड्डे, नदी से घिरे हुए प्रदेश, निर्जल प्रदेश, अटवी आदि में स्थित किये, वन, वन में स्थित विषम स्थान, पर्वत, पर्वत पर स्थित किले, कूप, तालाब, झीले, नदियाँ, बावडी, पुष्करणी, दीर्घिकाओं (लम्बी और गहरी बावडियाँ) गुंजालिकाओं, सरोवरों, सरोवरों की पंक्तियों आदि स्थलों को भुजा को फैला कर, ऊंचानीचा होकर न देखे। कारण कि केवली भगवान् ने इसे कर्मबंध का कारण कहा है। क्योंकि
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