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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
जाणिज्जा पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा
ससिणिद्वेण वा कारण उदगतीरे चिट्टिज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - दुब्बलियं
त्याग कर दे, णो- नहीं, साइज्जिज्जा
भावार्थ - जल में तिरता हुआ साधु साध्वी यदि थकान का अनुभव करे तो शीघ्र ही वस्त्र पात्र आदि उपधि का त्याग कर दे, उस पर किसी प्रकार ममत्व न रखे। जब ऐसा जाने कि वह किनारे पर पहुँच गया है तो जब तक शरीर से जल टपकता रहे शरीर गीला रहे तब तक यतनापूर्वक (नदी) के किनारे पर ही खड़ा रहे ।
भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कायं णो आमज्जिज्ज वा णो पमज्जिज्ज वा संलिहिज्ज वा णिलिहिज्ज वा उव्वलिज्ज वा उव्वट्टिज वा आयाविज्ज वा पयाविज्ज वा । अह पुण एवं जाणिज्जा विगओदओ में काए छिण्णसिणेहे का, तहप्पगारं कायं आमज्जिज्ज वा जाव पयाविज्ज वा । तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥ १२२ ॥
कठिन शब्दार्थ - णो नहीं, आमज्जिज्ज - पौंछे, पमज्जिज प्रमार्जित करे, संलिहिज्ज - दबावे, छिण्णसिणेहे - जल से रहित ।
भावार्थ - साधु या साध्वी पानी से भीगे हुए शरीर को पौंछे नहीं, प्रमार्जित नहीं करे, निचोड़े नहीं, मसले नहीं, उबटन की भांति शरीर को मले नहीं इस तरह शरीर और वस्त्रादि को धूप में तपावें नहीं । जब साधु यह जाने कि मेरा शरीर पूर्णतया सूख गया है तब ही शरीर को पौंछे, पूंज ले और धूप में तपा ले । तत्पश्चात् यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो परेहिं सद्धिं परिजविय - परिजविय गामाणुगामं दूइज्जिज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥ १२३ ॥
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दुर्बलता को, पाउणिज्जा
ममत्व करे ।
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कठिन शब्दार्थ- परिजविय वार्तालाप करता हुआ ।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहस्थों के साथ वार्तालाप करते हुए नहीं चले, किन्तु यतना पूर्वक ईर्या समिति का पालन करते हुए एक गांव से दूसरे गांव विहार करे ।
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