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अध्ययन ३ उद्देशक २
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विवेचन - साधु या साध्वी को विहार करते समय दस बोलों (५ इन्द्रिय विषयों और ५ स्वाध्याय के भेदों) को वर्ज कर चलना चाहिए (उत्तरा० २४)। चलते समय बातचीत करने से ईर्यासमिति का सम्यक् पालन नहीं हो पाता है। अतः यहाँ निषेध किया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमजिज्जा पमज्जित्ता एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीइज्जा॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जंघासंतारिमे - जंघा प्रमाण।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी को ग्रामानुग्राम विचरते हुए मार्ग में पानी बहता हुआ मिले और उसका परिमाण घुटने तक हो, उसे पार करना हो तो सम्पूर्ण शरीर को प्रमार्जित करके एक पांव जल में और एक पांव स्थल में रखकर यतना पूर्वक (ईर्या समिति से) जंघा परिमाण जल में चले। - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो हत्थेण वा हत्थं, पाएण वा पायं, काएण वा कायं आसाएज्जा, से अणासायए अणासायमाणे तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीइज्जा॥ - भावार्थ - जंघा परिमाण जल में गमन करते हुए साधु या साध्वी हाथ से हाथ का, पैर से पैर का और शरीर के किसी अन्य अवयव का परस्पर स्पर्श नहीं करे और अप्काय जीवों की विराधना से बचने के लिए ईर्या समिति पूर्वक जंघा परिमाण जल में गमन करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो सायावडियाए णो परिदाहवडियाए, महइमहालयंसि उदगंसि कायं विउसिज्जा तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीइज्जा। अह पुण एवं जाणिज्जापारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा ससिणिर्तण वा काएण उदगतीरे चिट्ठिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - सायावडियाए - साता के लिए, परिदाहवडियाए - दाह शांति के लिए-गर्मी दूर करने के लिए, महइमहालयंसि - बड़े विस्तृत गहरे।
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