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अध्ययन ३ उद्देशक २
१६१ ......................................................... से पकड़ कर नौका से जल में फैंकने वाले हैं तो उसके पूर्व ही साधु साध्वी गृहस्थों से कहे कि 'हे आयुष्मन् गृहस्थो! आप मुझे भुजाओं से पकड़ कर जबरदस्ती पानी में मत फैंको। मैं स्वयं ही नौका को छोड़कर जल में उतर जाऊंगा।' साधु साध्वी के इस प्रकार कहने पर भी अज्ञानी जीव बलपूर्वक साधु साध्वी को भुजाओं से पकड़ कर नौका से बाहर जल में फैंक दें, तो साधु साध्वी मन में किसी प्रकार हर्ष-शोक न करे, किसी प्रकार का संकल्प-विकल्प न करे
और न ही उन अज्ञानी पुरुषों का घात या वध करने के लिए उद्यत हो, अपितु राग-द्वेष से रहित होकर शांत चित्त से जल में प्रवेश कर जाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो हत्येण हत्थं पाएण पायं काएण कायं आसाइज्जा से अणासायणाए अणासायमाणे तओ संजयामेव उदगंसि पवज्जिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - अणासायमाणे - स्पर्श न करता हुआ, पव्वजिज्जा - तिरता जाय।
भावार्थ - वह साधु या साध्वी जल में तिरते-डूबते हुए हाथ से हाथ का, पैर से पैर का और शरीर से शरीर का स्पर्श न करे। वह अप्काय के जीवों की विराधना से बचने के लिए यतना पूर्वक जल में तिरता चला जाय।
विवेचन - 'पवमाणे' के स्थान पर पाठान्तर है - 'पवयमाणे' (प्रपतन) - जिसका अर्थ है-गिरता हुआ।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो उम्मुग्गणिमुग्गियं करिजा, मामेयं उदगं कण्णेसु वा अच्छीसु वा णक्कंसि वा मुहंसि वा परियावजिज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवज्जिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - उम्मुग्गणिमुग्गियं - उन्मज्जन-निमज्जन-ऊपर-नीचे आने जाने की क्रिया अर्थात् डुबकी लगाना कण्णेसु - कानों में, अच्छीसु - आँखों में, णक्कंसि - नाक में।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी जल में तिरते हुए डुबकियाँ भी नहीं लगावे। यह पानी कान, आँख, नाक या मुंह में प्रवेश कर विनाश करेगा इस प्रकार का भी विचार न करते हुए यतना पूर्वक जल में तिरता जाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दुब्बलियं पाउणिज्जा, खिप्पामेव उवहिं विगिंचिज वा विसोहिज्ज वा, णो चेव णं साइजिजा। अह पुण एवं
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