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अध्ययन २ उद्देशक ३
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को स्वाध्यायादि धार्मिक कार्य में बाधा आती हो तो ऐसे उपाश्रय में साधु साध्वी नहीं ठहरे, स्वाध्यायादि न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलंति वा पहोयंति वा सिंचंति वा सिणावेंति वा, णो पण्णस्स जाव णो ठाणं वा, सेजं वा, णिसीहियं वा चेइज्जा॥९६॥
भावार्थ - जिस उपाश्रय में गृहस्थ यावत् नौकरानियाँ आपस में शीतल अथवा उष्ण जल से उछालते हुए छींटे देते हैं, शरीर को धोते हैं, जल से सिंचन करते हैं, स्नान कराते हैं तो बुद्धिमान् साधु ऐसे उपाश्रय को धार्मिक क्रियाओं में बाधक जानकर वहां निवास, • शय्या, स्वाध्यायादि न करे अर्थात् वहाँ ठहरे नहीं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिया, णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्म विण्णवेंति रहस्सियं वा मंतं मंति, णो पण्णस्स जाव णो ठाणं वा, सेजं वा, णिसीहियं वा चेइज्जा॥९७॥
कठिन शब्दार्थ - णिगिणा - नग्न, ठिया - स्थित, उवल्लीणा - गुप्त, छिपा हुआ, विण्णवेंति- कह रहे हैं, रहस्सियं - रहस्य को, मंतं मंति - गुप्त मंत्रणा कर रहे हैं।
भावार्थ - जिस उपाश्रय में गृहपति यावत् दास दासियाँ आदि नग्नावस्था में खड़े हों अथवा नग्न होकर छिपे हुए हों और मैथुन धर्म विषयक परस्पर वार्तालाप कर रहे हों अथवा रहस्यमय अकार्य के लिए गुप्त मंत्रणा करते हों तो बुद्धिमान् साधु ऐसे उपाश्रय को धार्मिक चिंतन मनन में बाधक मानकर वहां निवास न करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा - आइण्णसंलिक्खं, णो पण्णस्स जाव चिंताए जाव णो ठाणं वा, सेजं वा, णिसीहियं वा चेइज्जा॥९८॥
कठिन शब्दार्थ - आइण्णसंलिक्खं - स्त्री-पुरुष आदि के चित्रों से सुसज्जित।
भावार्थ - जो उपाश्रय स्त्री-पुरुष आदि के चित्रों से सुसज्जित हो ऐसे उपाश्रय में प्रज्ञावान् साधु साध्वी को निवास, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग नहीं करना चाहिए।
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