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.. आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध storiterterstreetweeterrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror वा, पणियगिहाणि वा, पणियसालाओ वा, जाणगिहाणि वा, जाण सालाओ वा, सुहाकम्मंताणि वा, दब्भकम्मंताणि वा, बद्धकम्मंताणि वा, वक्कयकम्मंताणि वा, इंगालकम्मंताणि वा, कट्ठकम्मंताणि वा, सुसाणकम्मंताणि वा, संतिकम्मंताणि वा, सुण्णागारगिरिकंदर-संतिसेलोवट्ठाणकम्मंताणि वा, भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं उवयमाणेहिं उवयंति अवमाउसो! अभिक्कंत किरिया यावि भवइ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - आयारगोयरे - आचार-विचार, सद्दहमाणेहिं - श्रद्धा करते हुए, पत्तियमाणेहिं- प्रतीति करते हुए, रोयमाणेहिं - रुचि करते हुए, आएसणाणि - लुहार आदि की शालाएँ, आयतणाणि- देवालय के पास बनी हुई धर्मशालाएं या कमरे, देवकुलाणिदेवालय (देवकुल) सहाओ - सभाएँ, पवाणि - प्रपाएं-पानी पिलाने का स्थान, प्याउएं आदि, पणियगिहाणि - दुकानें, पणियसालाओ - पण्यशालाएँ-बखार माल गोदाम, जाणगिहाणि - यान गृह, जाणसालाओ - रथ शाला, सुहाकम्मंताणि- चूने का कारखाना, दब्भकम्मंताणि - दर्भ का कारखाना, बद्धकम्मंताणि - चर्मालय, वक्कयकम्मंताणिवल्कल का कारखाना, इंगालकम्मंताणि - कोयले बनाने का स्थान, अग्नि का कारखाना, कट्ठकम्मंताणि - लकड़ी का कारखाना, सुसाणकम्मंताणि - श्मशान गृह, संतिकम्मंताणिशांति-गृह, सुण्णागार - शून्यागार, गिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणकम्मंताणि - पर्वत की चोटी पर बनाया गया घर, गुफा, पाषाण मंडप आदि स्थान, उवयमाणेहिं - बारम्बार आ रहे हों।
भावार्थ - इस संसार में पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर आदि दिशाओं में कई गृहस्थ और स्त्रियाँ आदि धर्म श्रद्धालु होते हैं, उनको साधुओं के आचार-विचार का पूरा ज्ञान नहीं होता, मात्र दानादि देने से महान् फल होता है इस पर श्रद्धा प्रतीति और रुचि रखकर वे सामान्यतः बहुत से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दीन और भिखारी आदि के निमित्त से उनके ठहरने के लिए बड़े-बड़े मकान बनवाते हैं। जैसे लुहार आदि की शालाएं, देवालय के पास का कमरा, देवकुल, सभा, प्याऊ, दुकान, बखार, यानशाला, रथशाला, चूने का कारखाना, धर्मशाला, चर्मालय, वल्कल का कारखाना, कोयले बनाने का कारखाना, लकड़ी का कारखाना, श्मशान गृह, शांति गृह, शून्यागार, पर्वत के शिखर पर बनवाया हुआ मकान, पर्वत की गुफा, पाषाण मंडप, भवनगृह-भवन के आकार में बने हुए गृह-गृहस्थ लोगों के रहने के स्थान
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