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अध्ययन १ उद्देशक १०
पडिगाहिज्जा। से आहच्च पडिगाहिए सिया तं च णाइदूरगए जाणिज्जा, से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा गच्छित्ता पुव्वामेव आलोइज्जा आउसो त्ति वा भइणिति वा इमं किं ते जाणया दिण्णं, उदाहु अजाणया ? से य भणिज्जा णो खलु मे जाणया दिण्णं, अजाणया दिण्णं, कामं खलु आउसो ! इयाणिं णिसिरामि तं भुंजह वा णं परिभाएह वा णं तं परेहि समणुण्णायं समणुसिद्धं तओ संजयामेव भुंजिज्ज वा पीइज वा, जं च णो संचाएइ भोत्तए वा पायए वा साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया तेसिं अणुप्पदायव्वं सिया णो जत्थ साहम्मिया जहेव बहुपरियावण्णे कीरइ तहेव कायव्वं सिया ॥
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं ॥ ५९ ॥ ॥ दसमोसो समत्तो ॥
खान का, लोणं - लवण - नमक, उब्भियं
कठिन शब्दार्थ - बिलं उत्पन्न हुआ (उद्भिज), णाइदूरगए समणुसिद्धं सम्यक् प्रकार से ।
भावार्थ - यदि कोई गृहस्थ भिक्षार्थ आए साधु या साध्वी को भीतर से अपने पात्र में रखे बिड का नमक या उद्भिज नमक लाकर उसमें से कुछ साधु को देने लगे तो इस प्रकार के लवणादि को गृहस्थ के पात्र या हाथ में रहे हुए ही को अप्रासुक और अनेषणीय जानकर ग्रहण न करें।
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झील में बहुत दूर नहीं, समणुण्णायं - आज्ञा मिलने पर,
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अगर अकस्मात् ग्रहण कर लिया हो और गृहस्थ को समीपस्थ ही जानकर लवणादि को लेकर वहाँ जाय और गृहस्थ को दिखलाकर कहे कि हे आयुष्मन् अथवा भगिनि ! तुमने यह पदार्थ जान बूझ कर दिया है या अनजाने में दिया है ? गृहस्थ क मैंने जानबूझ कर नहीं दिया है किन्तु अनजान से दे दिया है परन्तु अब मैं यह पदार्थ आपको देता हूँ अतः आप इसका उपभोग करें अथवा बांट लें। इस तरह गृहस्थ से आज्ञा प्राप्त कर साधु यतनापूर्वक उसे खाए अथवा पीवे। अगर स्वयं खाने पीने में असमर्थ हो तो समीपस्थ स्थित अन्य साधर्मिक, सांभोगिक, समनोज्ञ अपारिहारिक साधुओं को दे देवे। यदि साधर्मी आदि साधु नजदीक न हो तो अधिक आहार परठने की विधि के अनुसार एकान्त निरवद्य स्थान में जाकर उसे यतना पूर्वक परठ दे ।
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