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________________ [7] 事事串串串串串整串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串 串串串串串串串聯 से इसकी सूत्र शैली में उसकी रचना की गई। जिसके कारण इसकी भाषा शैली में क्लिष्टता आयी है। जबकि द्वितीय श्रुतस्कन्ध में साधना के रहस्य को व्याख्यात्मक दृष्टि से समझाया गया है। इसलिए इसकी शैली बिलकुल सुगम और सरल रखी गई है। आधुनिक युग में भी प्रायः देखा जाता है कि जब कोई लेखक दार्शनिक विषय पर चिंतन करता है तो उसकी भाषा शैली गंभीरता लिए हुए होती है और जब वही लेखक बाल साहित्य लिखता है तो उसकी भाषा शैली अलग ही होती है। यही बात प्रथम और द्वितीय श्रुतस्कन्ध के बारे में समझनी चाहिये। आचारांग सूत्र में गद्य और पद्म दोनों शैली का समीक्षण है। जैनागमों का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया गया है। समवायांग सूत्र में इनका वर्गीकरण पूर्व और अंग के रूप में मिलता है, दूसरा वर्गीकरण अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य के रूप में किया गया है, तीसरा और सबसे अर्वाचीन वर्गीकरण अंग, उपांग, मूल और छेद रूप में है, जो कि वर्तमान में प्रचलित है। ११ अंग :- आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अन्तकृतदसा, अनुत्तरौपातिक, प्रश्नव्याकरण एवं विपाक सूत्र। १२ उपांग :- औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, निरियावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशासूत्र। ४ छेद :- दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ सूत्र। ४ मूल :- उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोग द्वार सूत्र । १ आवश्यक : ' उपासना कुल ३२ प्रस्तुत आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में नौ अध्ययन हैं जिनका संक्षेप में सार इस प्रकार है. शस्त्र परिज्ञा नाम प्रथम अध्ययन - जिसके द्वारा जीवों की हिंसा अथवा घात होती है उसे 'शस्त्र' कहा गया है। आगम में शस्त्र के दो भेद किये गये हैं। द्रव्य शस्त्र जैसे तलवार, चाकू, छूरी आदि। दूसरा है भाव शस्त्र, मन वचन काया के अशुभ योगों (विचारों) को भाव शस्त्र कहा गया है। इस प्रथम अध्ययन में भाव शस्त्रों की जानकारी दी गई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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