SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [6] 88888888®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®®RRRRRRRR8 एवं अधोलोक नरक प्रधान क्षेत्र है। मध्यलोक, एक ऐसा स्थान है जहाँ से जीव ऊर्ध्वलोक एवं अधोलोक दोनों स्थानों पर जा सकता है। उत्कृष्ट पाप करने वाला नरक क्षेत्र में नैरयिक बन कर उत्पन्न होता है। पुण्य का उपार्जन करने वाला जीव उन पुण्यों के फल को भोगने के लिए स्वर्ग में उत्पन्न होता है। पर ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुआ वहाँ से सीधा चव कर नारकी में उत्पन्न नहीं होता। इसी प्रकार नीचे लोक का नैरयिक काल करके सीधा ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न नहीं होता। मात्र मध्यलोक ही एक ऐसा स्थान है जहाँ से जीव सीधा ऊर्ध्वलोक, नीचालोक और मध्यलोक तीनों स्थानों में उत्पन्न हो सकता है और यदि उत्कृष्ट साधना करे तो सम्पूर्ण कर्मों को क्षय करके सिद्धत्व को भी प्राप्त कर सकता है। आचारांग सूत्र आचार प्रधान होने से इसका स्थान अंग शास्त्रों में प्रथम है। अतएव इसके अर्थ के प्ररूपक स्वयं तीर्थंकर भगवान् महावीर प्रभु थे और सूत्र के रचयिता पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी है। यह तो सर्व विदित है कि प्रभु अर्थ रूप में देशना फरमाते हैं। तत्पश्चात् प्रत्येक गणधर अपनी-अपनी भाषा शैली में उनका सूत्र रूप में निर्माण करते हैं। भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर थे और नौ गण थे। ग्यारह गणधरों में आठवें और नौवें तथा दशवें और ग्यारहवें गणधरों की सम्मिलित वाचनाएं हुई। जिसके कारण नव गण कहलाये। भगवान् महावीर की मौजूदगी में नौ गणधर मोक्ष पधार गये थे। इन्द्रभूति और सुधर्मा स्वामी शेष रहे, उनमें इन्द्रभूति गौतम गणधर को भगवान् के निर्वाण के बाद केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हो गया था, जिसके कारण जो भी अंग साहित्य वर्तमान में उपलब्ध है वह गणधर सुधर्मा स्वामी कृत है। ___ आचार्य शय्यम्भव द्वारा रचित दशवैकालिक सूत्र से पूर्व नव दीक्षित साधु साध्वियों के लिए आचारांग सूत्र का अध्ययन सर्वप्रथम करना आवश्यक था क्योंकि यह साधु साध्वी के आचार को बतलाने वाली कुंजी है। इसके अध्ययन के बिना साध्वाचार का पालन संभव नहीं। आचारांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन और दो चूला हैं। इस प्रकार दोनों श्रुतस्कन्ध में पच्चीस अध्ययन हैं। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की भाषा शैली एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध की भाषा शैली बिलकुल भिन्न है। जिसके कारण कई विचारकों की यह धारणा बनी हुई है कि इन दोनों के रचयिता भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। पर आगम साहित्य के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखने वालों का यह स्पष्ट अभिमत है कि दोनों श्रुतस्कन्धों के रचयिता एक ही व्यक्ति है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में तात्त्विक-निवेदन की प्रधानता होने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy