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________________ प्रथम अध्ययन - पांचवां उद्देशक - मनुष्य और वनस्पति में समानता 事事非事事學部學部部串串串串串串串串串串串串串串參參參參參參參參參參密密密事部部部部要率事事 वैसे ही यह वनस्पतिकाय भी वृद्धिधर्म वाला है। जैसे यह मनुष्य का शरीर चेतन है वैसे ही यह वनस्पतिकाय भी चेतन है। जैसे यह मनुष्य का शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है उसी प्रकार यह वनस्पति भी छिन्न होने पर म्लान हो जाती है, काट देने पर सूख जाती है। जैसे यह मनुष्य आहार करता है वैसे ही वनस्पति भी आहार करती है। जैसे यह मनुष्य का शरीर अनित्य है वैसे ही यह वनस्पतिकाय भी अनित्य है। जैसे यह मनुष्य का शरीर अशाश्वत है वैसे ही वनस्पतिकाय भी अशाश्वत है। जैसे यह मनुष्य का शरीर अपचय-हास और उपचय-वृद्धि. को प्राप्त होता है वैसे ही यह वनस्पतिकाय भी चयोपचय (अपचय और 'उपचय) को प्राप्त होता है। जैसे मनुष्य का शरीर विपरिणामधर्मी-अनेक प्रकार के परिणामों (अवस्थाओं) वाला है उसी प्रकार वनस्पतिकाय भी अनेक प्रकार के परिणामों को प्राप्त होता है। .. विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में वनस्पति की सजीवता को सिद्ध करने के लिये उसकी मनुष्य शरीर के साथ तुलना की गई है और यह स्पष्ट किया गया है कि जो गुणधर्म मनुष्य के शरीर में पाए जाते हैं वे ही गुणधर्म वनस्पति के शरीर में भी होते हैं। - बहुत से अन्यतीर्थी वनस्पतिकाय को सचेतन नहीं मान कर अचेतन मानते हैं और उसके छेदन भेदन में हिंसा न होना बताते हैं किंतु उनकी यह मान्यता अज्ञानमूलक है। क्योंकि जैसे हमारे चेतनायुक्त शरीर में उत्पत्ति, वृद्धि, चेतना, चय, उपचय आदि धर्म पाये जाते हैं, वैसे ही वे सारे धर्म वनस्पतिकाय में भी पाये जाते हैं। अतः वनस्पति चेतन है, अचेतन नहीं। .. जैनदर्शन में वनस्पति के संबंध में बहुत ही सूक्ष्म एवं व्यापक चिंतन किया गया है। जब सर जगदीशचन्द्र बोस. ने वनस्पति में भी मानव के समान ही चेतनता की सिद्धि कर बताई है तब से जैनदर्शन का वनस्पति सिद्धान्त एक वैज्ञानिक सिद्धान्त के रूप में प्रतिष्ठित हो गया है। __वनस्पति विज्ञान (Botany) आज जीव-विज्ञान का प्रमुख अंग बन गया है। सभी जीवों को जीवन-निर्वाह करने, वृद्धि करने, जीवित रहने और प्रजनन (संतानोत्पत्ति) के लिए भोजन किंवा ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। यह ऊर्जा सूर्य से फोटोन (Photon) तरंगों के रूप में पृथ्वी पर आती है। इसे ग्रहण करने की क्षमता सिर्फ पेड़-पौधों में ही है। पृथ्वी के सभी प्राणी पौधों से ही ऊर्जा (जीवन शक्ति) प्राप्त करते हैं। अतः पेड़-पौधों (वनस्पति) का मानव जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। वैज्ञानिक व चिकित्सा-वैज्ञानिक मानव-शरीर के विभिन्न अवयवों का, रोगों का तथा आनुवंशिक गुणों का अध्ययन करने के लिए आज 'वनस्पति' (पेड़-पौधों) का, अध्ययन करते हैं। अतः वनस्पति-विज्ञान के क्षेत्र में आगमसम्मत वनस्पतिकायिक जीवों की मानव शरीर के साथ तुलना बहुतं अधिक महत्त्व रखती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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