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- आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 88888888888888888888RRRRRRRRRRRRRRRRRR888888880
मूल में 'अभ्याख्यान' शब्द आया है जिसके कई अर्थ होते हैं। आगमों में अभ्याख्यान शब्द के निम्न अर्थ प्रयुक्त हुए हैं -
अभ्याख्यान अर्थात् दोषाविष्करण - दोष प्रकट करना (भगवती ५/६). - असद् दोष का आरोपण करना - (प्रज्ञापना पद २२, प्रश्नव्याकरण० २) - दूसरों के समक्ष निंदा करना (प्रश्न० २) . - असत्य अभियोग लगाना (आचारांग १/३)
अप्काय के जीवों के अस्तित्व को न मानना उनका अभ्याख्यान करना है क्योंकि किसी के अस्तित्व को नकारना, सत्य को असत्य, असत्य को सत्य, जीव को अजीव, अजीव को जीव कहना विपरीत कथन है। अप्काय को चेतन न मान कर जड़ मानना, मिथ्या भाषण करना है तथा जीव को अजीव बताना उस पर असत्य अभियोग लगाने के समान है।
इस प्रकार जो पुरुष अप्काय के जीवों के अस्तित्व का अपलाप करता है. वह आत्मा के अस्तित्व का अपलाप करता है, स्वयं की सत्ता को नकारता है। जिस प्रकार स्व का अस्तित्व स्वीकार्य है उसी प्रकार अप्कायिक जीवों का अस्तित्व भी स्वीकारना चाहिये।
(२१) . लजमाणा पुढो, पास अणगारा मो त्ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदयकम्मसमारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगहवे पाणे विहिंसइ। ___ कठिन शब्दार्थ - उदयकम्मसमारंभेणं - अप्काय (जल) के आरंभ-समारम्भ द्वारा, उदयसत्थं - अप्काय रूप शस्त्र का। - भावार्थ - आत्म-साधक अप्काय की हिंसा करने में लज्जा का अनुभव करते हैं तू उन्हें पृथक् देख! अर्थात् अप्काय का आरंभ करने वाले साधुओं से उन्हें भिन्न समझ। .
कुछ साधु वेषधारी 'हम अनगार-गृहत्यागी हैं' ऐसा कथन करते हुए भी नाना प्रकार के शस्त्रों से अप् (जल) सम्बन्धी हिंसा में लग कर अपकायिक जीवों का आरम्भ-समारम्भ करते हैं तथा अप्कायिक जीवों की हिंसा के साथ तदाश्रित, अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिंसा करते हैं। .
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