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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) ®®®®®®®®®®RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR का भेदन-छेदन करे, होट्ठमब्भे-हो?मच्छे- ओष्ठों का भेदन-छेदन करे, दंतमन्भे-दंतमच्छे - दांतों का भेदन-छेदन करे, जिब्भमन्भे-जिब्भमच्छे - जीभ का भेदन-छेदन करे, तालुमन्भेतालुमच्छे - तालु का भेदन-छेदन करे, गलमब्भे-गलमच्छे - गले (गर्दन के पीछे का भाग) का भेदन-छेदन करे, गंडमब्भे-गंडमच्छे - गाल का भेदन-छेदन करे, कण्णमब्भे-कण्णमच्छेकान का भेदन-छेदन करे, णासमन्भे-णासमच्छे - नाक का भेदन-छेदन करे, अच्छिमब्भेअच्छिमच्छे - आंख का भेदन-छेदन करे, भमुहमब्भे-भमुहमच्छे-भ्रकुटि का छेदन भेदन करे, णिडालमन्भे-णिडालमच्छे - ललाट का भेदन-छेदन करे, सीसमब्भे-सीसमच्छे - शिर का भेदन-छेदन करे, संपमारए - मूर्च्छित कर दे, उद्दवए - उपद्रव करे। ...
भावार्थ - मैं कहता हूं - जैसे कोई किसी जन्मान्ध - जन्म से इन्द्रिय विकल - बहरा, गूंगा, पंगु तथा अवयवहीन-मनुष्य को मूसल भाला आदि से भेदन करे, तलवार आदि से छेदन करे, उसे जैसी पीड़ा होती है वैसी ही पीड़ा पृथ्वीकायिक जीवों को होती है। .... ___जैसे कोई व्यक्ति किसी के पैरों का भेदन करे, चोट पहुंचाए, पैरों का छेदन करे, गुल्फों का भेदन छेदन करे, जंघा का भेदन छेदन करे, घुटनों का भेदन छेदन करे, उरु का भेदन छेदन करे, कटिभाग - कमर का भेदन छेदन करे, नाभि का भेदन छेदन करे, पेट का भेदन छेदन करे, पार्श्वभाग-पसवाडे का भेदन छेदन करे, पीठ का भेदन छेदन करे, छाती का भेदन छेदन करे, हृदय का भेदन छेदन करे, स्तनों का भेदन छेदन करे, कन्धे का भेदन छेदन करे, बाहुभुजा का भेदन छेदन करे, हाथ का भेदेन छेदन करे, अंगुली का भेदन छेदन करे, नखों का भेदन छेदन करे, ग्रीवा (गर्दन का आगे का भाग) का भेदन छेदन करे, दाढ़ी का भेदन छेदन करे, ओष्ठों का भेदन छेदन करे, दांतों का भेदन छेदन करे, जीभ का भेदन छेदन करे, तालु का भेदन छेदन करे, गले (गर्दन के पीछे का भाग) का भेदन छेदन करे, गाल का भेदन छेदन करे, कान का भेदन छेदन करे, नाक का भेदन छेदन करे, आंख का भेदन छेदन करे, भ्रकुटि का भेदन छेदन करे, ललाट का भेदन छेदन करे, शिर का भेदन छेदन करे तो उस प्राणी को जैसा दुःख होता है वैसा ही पृथ्वीकाय के जीवों को भी दुःख होता है। ___जैसे कोई किसी को गहरी चोट पहुंचा कर मूर्च्छित कर दे अथवा प्राण-वियोजन कर दे, तो उसे जैसी वेदना होती है वैसी ही पृथ्वीकायिक जीवों की वेदना समझनी चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक जीवों की सचेतनता और मनुष्य शरीर के समान ही होने वाले दुःख का स्पष्टीकरण किया गया है।
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