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प्रथम अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - पृथ्वीकायिक आदि जीवों को वेदना का अनुभव १६ 888888888888888@RRRRRRRRRRRRRRRR8888888@@@@
पृथ्वीकायिक जीवों में अव्यक्त चेतना होती है उनमें हलन चलन आदि क्रियाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होती है अतः यह शंका होना स्वाभाविक है कि पृथ्वीकाय के जीव न देखते हैं, न सुनते हैं न सूंघ सकते हैं, न चल सकते हैं, फिर कैसे माना जाय कि वे जीव हैं? और उन्हें छेदन भेदन से पीड़ा होती है? |
इस शंका का समाधान सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में निम्न तीन दृष्टान्त देकर किया है -
प्रथम दृष्टान्त - जैसे कोई मनुष्य जन्म से अंधा, बहरा, मूक या पंगु है। कोई पुरुष । उसका भाले के अग्रभाग से भेदन करता है अथवा तलवार आदि अन्य शस्त्रों से उसका छेदन करता है तो वह उस पीड़ा को न तो वाणी से व्यक्त कर सकता है, न आक्रन्दन ही कर सकता है, न उस दुःख से बचने के लिए वह कहीं भाग ही सकता है, न अन्य किसी चेष्टा से उस पीड़ा को व्यक्त ही कर सकता है तो क्या यह मान लिया जाय कि वह जीव नहीं है या उसे छेदन-भेदन से पीड़ा नहीं होती है? नहीं, ऐसा नहीं होता, उसे वेदना का संवेदन तो होता है पर उसे वह अभिव्यक्त नहीं कर सकता। - इसी प्रकार पृथ्वीकाय के जीवों को छेदन भेदन में वेदना तो होती है किंतु इन्द्रिय विकल होने के कारण वे उसे व्यक्त नहीं कर सकते।
द्वितीय दृष्टान्त - जैसे किसी स्वस्थ मनुष्य के पैर, गुल्फ, जानु, उरु, कमर, नाभि, उदर, पार्श्व, पीठ, छाती, हृदय, स्तन, कंधा, भुजा, हाथ, अंगुली, नख, ग्रीवा, ठोडी, ओष्ट, दांत, जिह्वा, तालु, गाल, गण्ड, कर्ण, नासिका, आंख, भ्रू, ललाट, शिर आदि अवयवों को कोई निर्दयी पुरुष एक साथ छेदन भेदन करता है तो वह मनुष्य न भली प्रकार देख सकता है, न सुन सकता है, न बोल सकता है, न चल सकता है किंतु इससे यह तो नहीं माना जा सकता कि उसमें चेतना नहीं है या उसे वेदना नहीं हो रही है। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों में व्यक्त चेतना का अभाव होने पर भी उनमें प्राणों का स्पंदन है अतः उन्हें कष्टानुभूति होती है और उनकी यह कष्टानुभूति अव्यक्त होती है। .. तृतीय दृष्टान्त - जैसे मूर्च्छित मनुष्य की चेतना बाहर से लुप्त होते हुए भी उसकी अंतरंग चेतना लुप्त नहीं होती उसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों की चेतना मूर्च्छित व अव्यक्त होती है किंतु वे अन्तर चेतना से शून्य नहीं होते अतः उन्हें वेदना तो होती ही है।
इसी बात को भगवती सूत्र शतक १६ उद्देशक ३५ में इस प्रकार स्पष्ट किया है -
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