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________________ १४ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ****** कठिन शब्दार्थ - अणगारा मोति 'हम अनगार हैं' - इस प्रकार, एगे कोई एक पवयमाणा बोलते हुए, जं इणं - जो इस, विरूवरूवेहिं - नाना प्रकार के, सत्थेहिं - शस्त्रों के द्वारा, पुढविकम्मसमारंभेणं - पृथ्वीकाय के आरम्भ द्वारा, पुढविसत्थं - पृथ्वीका रूप शस्त्र का, समारंभेमाणे आरम्भ करते हुए, अणेगरूवे अनेक प्रकार के, विहिंस हिंसा करता है। 'भावार्थ - 'हम अनगार गृहत्यागी हैं ऐसा कथन करते हुए कुछ वेषधारी साधु नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वी सम्बन्धी हिंसा - क्रिया में लग कर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं तथा पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा के साथ उसके आश्रय में रहने वाले अन्य अनेक प्रकार के प्राणियों की हिंसा करते हैं। आचारांग सूत्र ( प्रथम श्रुतस्कन्ध ) ❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀ - Jain Education International विवेचन - जो साधु वेशधारी अपने आप को अनगार ( मुनि) कहते हुए भी गृहस्थ के समान पृथ्वीकाय आदि का आरम्भ समारम्भ करते हैं, करवाते हैं और करने वाले का अनुमोदन करते हैं वे वास्तव में अनगार नहीं हैं। ऐसे साधुओं का अनुकरण नहीं करना चाहिये । . जो वस्तु, जिस जीवकाय के लिए मारक होती है वह उसके लिये शस्त्र है। नियुक्तिकार ने गाथा ६५-६६ में पृथ्वीकाय के शस्त्र इस प्रकार बताये हैं. १. कुदाली आदि भूमि खोदने के उपकरण । २. हल आदि भूमि विदारण के उपकरण । ३. मृगश्रृंग ४. काठ - लकड़ी तृण आदि ५. अग्निकाय - ६. उच्चार - प्रस्रवण ( मल-मूत्र ) ७. स्वकाय शस्त्र जैसे - काली मिट्टी का शस्त्र पीली मिट्टी आदि । ८. परकायशस्त्र जैसे - जल आदि । ६. तदुभय शस्त्र जैसे १०. भाव शस्त्र - - - मिट्टी मिला जल । असंयम । हिंसा के कारण (१३) तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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