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________________ नववां अध्ययन - तृतीय उद्देशक - लाढ देश में विचरण ३२५ 參參參參參參佛部部密密部參事部部參事单密密事部非密密事部部串串串串串串串串串串 शुभ्रभूमि इन दोनों ही प्रदेशों में विचरे थे। वहां अनेक उपद्रवों से युक्त सूने घर आदि में भगवान् ठहरे और काठ आदि के टेढे मेढे आसन पर शयन किया था। (५०१) लाढेहिं तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु। अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिसिँसु णिवइंसु॥ कठिन शब्दार्थ - जाणवया - जानपदाः-लोग, लूसिंसु - मारते थे, लूहदेसिए - रूक्ष - रूखा सूखा, भत्ते - आहार पानी, कुक्कुरा - कुत्ते, हिंसिसु - काटते थे, णिवइंसु - टूट पड़ते थे। भावार्थ - लाढ देश में भगवान् महावीर स्वामी को बहुत उपसर्ग हुए। वहां के बहुत से अनार्य लोग भगवान् पर डण्डों आदि से प्रहार करते थे। उस देश के लोग ही रूखे थे अतः आहार भी रूखा सूखा ही मिलता था। वहां के कुत्ते उन पर टूट पड़ते थे और काट खाते थे। (५०२) अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए डसमाणे। छुच्छुकारंति आहेतु 'समणं कुक्कुरा दसंतु' ति॥ कठिन शब्दार्थ - णिवारेइ - हटाते हैं, लूसणए - लूषणक - काटते हुए, सुणए - कुत्तों का, डसमाणे. - काटते हुए, छुच्छुकारंति - छू-छू करके, दसंतु - काट खाये। भावार्थ - लाढ देश में विचरते हुए कुत्ते काटने लगते या भौंकते तो बहुत थोड़े लोग उन काटते हुए कुत्तों को हटाते/रोकते जबकि अधिकांश लोग तो 'इस साधु को ये कुत्ते का?' इस नीयत से कुत्तों को बुलाते और छू-छू कर उनके पीछे लगाते। (५०३) एलिक्खए जणे भुजो, बहवे वजभूमि फरुसासी। लडिं गहाय णालियं, समणा तत्थ एव विहरिंसु।। कठिन शब्दार्थ - एलिक्खए - इस प्रकार के, भुजो - पुनः-पुनः, फरुसासी - ma Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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