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नववा अध्ययन
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द्वितीय उद्देशक - भगवान् की शय्या और आसन
अभी भी भी भी भी भी भी
नवमं अज्झयणं बीओहेसो
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नवम अध्ययन का द्वितीय उद्देशक
नौवें अध्ययन के प्रथम उद्देशक में भगवान् महावीर स्वामी की विहार चर्या विधि का वर्णन किया गया है। अब इस द्वितीय उद्देशक में उस वसति का वर्णन किया जाता हैं जहाँ भगवान् ठहरते थे। इस उद्देशक की प्रथम गाथा इस प्रकार हैं -
भगवान की शय्या और आसन
(४८४)
चरियासणाइं सेज्जाओ, एगइयाओ जाओ बुइयाओ । आइक्ख ताई सयणासणाई, जाई सेवित्थ से महावीरे ॥
(४८५)
आवेसण सभा-पवासु, पणियसालासु एगया वासो । अदुवा पलियट्ठाणेसु, पलालपुंजेसु एगया वासो ॥
कठिन शब्दार्थ
कठिन शब्दार्थ - चरिया - चर्या, आसणाई - आसन, सेज्जाओ - शय्याएं, बुइयाओकही गई हैं, आइक्ख - कहिये, सयणासणाई - शय्या और आसन का ।
भावार्थ - जम्बू स्वामी अपने गुरु श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जैसी शय्या और आसनादि का सेवन किया था उन शय्या और आसन आदि के विषय में मुझ से कहिये ।
श्री श्री श्री श्री भी
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आवेसण - शून्य घर में, पवासु - पानी के स्थान
प्याऊ में, एण्य शाला – दुकानों में, वासो - निवास करते थे, पलियट्ठाणेसु
पलालपुंज में - जहां चारों ओर स्तंभों के सहारे
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पणिय सालासु लुहार आदि की शाला में, पलालपुंजेसु पलाल (तृण पुंज) को एकत्रित करके रखा हो ऐसे स्थान में ।
'भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी कभी सूने खण्डहरों में, कभी सभाओं, कभी प्याऊओं
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