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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) @@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR और कभी दुकानों में निवास करते थे। अथवा कभी लुहार, सुथार आदि के कार्य करने के स्थानों (कारखानों) में और मंच के ऊपर रखे तृण पुंजों के नीचे निवास करते थे।
(४८६) आगंतारे आरामागारे तह य णगरे वि एगया वासो। सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले वि एमया वासो॥
कठिन शब्दार्थ-आगंतारे - मुसाफिरों के उतरने के स्थान धर्मशाला आदि में, आरामागारेआरामगृह - बगीचे में बने हुए मकान में, सुसाणे - श्मशान में, सुण्णगारे - शून्य घर में, रुक्खमूले - वृक्ष के नीचे।
___ भावार्थ - भगवान् कभी धर्मशाला (यात्रीगृह) में, कभी आरामगृह में अथवा गांव या नगर में निवास करते थे अथवा कभी श्मशान में, कभी शून्यगृह में तो कभी वृक्ष के नीचे ही निवास करते थे।
विवेचन - उपर्युक्त गाथाओं में भगवान् महावीर स्वामी के ठहरने के स्थानों का वर्णन किया गया है। भगवान् ऐसे स्थानों पर ठहरते थे जो एकान्त एवं निर्दोष हो, जहाँ किसी को किसी तरह का कष्ट न हो और अपनी साधना भी चलती रहे। वे अपने ऊपर आने वाले समस्त परीषहों को समभाव से सहन कर लेते थे किन्तु अपने जीवन से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देते थे।
(४८७) एएहिं मुणी सयणेहिं, समणे आसी पतेरसवासेछ। राइंदियं पि ४ जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए झाइ॥
कठिन शब्दार्थ - पतेरसवासे-पतेलसवासे - उत्कृष्ट तेरह वर्ष तक अर्थात् तेरह वर्ष से अधिक नहीं किन्तु तेरह वर्ष से कुछ कम समय तक, राइंदियंवि-राइंदिवं पि - रात दिन, जयमाणे - यतनापूर्वक, समाहिए - समाहित - समाधि - मानसिक स्थिरता युक्त, झाइ - ध्यान करते थे।
पाठान्तर - पतेलसवासे। पाठान्तर - राइंदिवं पि।
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