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________________ नववा अध्ययन - - विवेचन भगवान् अभिवादन करने वालों को भी आशीर्वचन नहीं कहते थे और अनार्य.. पुरुषों द्वारा मारने पीटने पर भी उन्हें शाप नहीं देते थे । अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषहों में समभाव रखते हुए संयम में लीन रहना अन्य साधकों के लिए बड़ा कठिन है। Jain Education International प्रथम उद्देशक - भगवान् की ध्यान साधना (४७०) फरुसाई दुत्तितिक्खाई, अइअच्च मुणी परक्कममाणे । आघाय - णट्ट - गीयाई, दंडजुज्झाई मुट्ठिजुज्झाई ॥ कठिन शब्दार्थ - फरुसाई - कठोर वचनों को, दुत्तितिक्खाइं अत्यंत दुःसह्य, अइअच्च- ध्यान नहीं देकर, अघाय णट्ट-गीयाई - आख्यात, नृत्य और गीत, दंडजुज्झाई - दण्ड युद्ध, मुट्ठिजुज्झाइं - मुष्टियुद्ध । भावार्थ - अनार्य पुरुषों द्वारा कहे हुए अत्यंत दुःसह्य कठोर वचनों को सुन कर उन पर ध्यान नहीं देते हुए भगवान् समभाव से सहन करने का पराक्रम करते थे। वे आख्यात, नृत्य, गीत, दण्डयुद्ध और मुष्टियुद्ध आदि को देखने की इच्छा नहीं रखते थे। · (४७१) गढिए मिहो कहासु, समयंमि णायसुए विसोए अदक्खू । एयाई से उरालाई, गच्छइ णायपुत्ते असरणाए । कठिन शब्दार्थ - मिहो कहासु - परस्पर वार्तालाप में, व्यर्थ की बातों में, विसोए हर्ष - शोक से रहित, असरणाए शरण न लेते हुए । भावार्थ - ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान् महावीर स्वामी किसी समय परस्पर कामोत्तेजक वार्तालाप में आसक्त लोगों को देख कर हर्ष शोक से रहित होकर मध्यस्थ रहते थे। वे इन अनुकूल प्रतिकूल परीषहों का स्मरण नहीं करते हुए संयम में विचरण करते थे। (४७२) अवि साहिए दुवे वासे, सीओदगं अभोच्चा णिक्खते । एगत्तगए पिहियच्चे, से अहिण्णायदंसणे संते ॥ ३०६ ❀❀❀❀❀ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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