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________________ आचाराग सूत्र ३०६ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 事部部參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 विवेचन - दीक्षा ग्रहण करते समय भगवान् का शरीर दिव्य गोशीर्ष (बावना) चंदन और सुगंधित चूर्ण से सुगंधित किया गया था उसकी गंध से आकर्षित होकर भंवरे आदि प्राणी. उनके शरीर पर आते थे और रक्त मांस की इच्छा से उनके शरीर को डसते थे। कुछ अधिक चार मास तक भगवान् ने उन प्राणियों द्वारा दिया हुआ कष्ट सहन किया था। (४६५) संवच्छरं साहियं मासं, जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं। : . अचेलए तओ चाई, तं वोसज वत्थमणगारे॥ कठिन शब्दार्थ - संवच्छरं - संवत्सर - वर्ष, ण रिक्कासि - त्याग नहीं किया था, चाई - त्यागी, वोसज - त्याग कर। . भावार्थ - एक वर्ष तथा एक मास से कुछ अधिक काल तक भगवान् ने उस वस्त्र का त्याग नहीं किया था फिर अनगार और त्यागी भगवान् महावीर स्वामी उस वस्त्र का त्याग करके अचेलक - वस्त्र रहित हो गये। . विवेचन - इस गाथा में यह स्पष्ट बतला दिया गया है कि दीक्षा लेते समय इन्द्र ने भगवान् के कंधे पर एक देवदूष्य वस्त्र रखा था वह तेरह महीने से कुछ अधिक समय तक उनके कंधे पर रहा फिर वह स्वतः गिर पड़ा। भगवान् से उसे वापिस उठाया नहीं तब से भगवान् सर्वथा अचेलक (निर्वस्त्र) हो गये। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की दानवीरता बतलाने के लिए कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि - एक गरीब ब्राह्मण ने भगवान् के पास आकर मांगणी की तब भगवान् ने उस वस्त्र में से आधा फाड़ कर ब्राह्मण को दे दिया और आधा अपने पास रख लिया। ___ उनका यह कहना आगमानुकूल नहीं है बल्कि आगम विरुद्ध है। दूसरी बात यह है कि यदि महावीर की दानवीरता ही बतलाना उन्हें इष्ट थो तो पूरा का पूरा वस्त्र दे देते। आधा अपने पास रखना और आधा वस्त्र फाड़ कर देना, यह तो कृपणता को सूचित करता है। अतः वस्त्र फाड़ कर आधा ब्राह्मण को देना, यह बात आगम विरुद्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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