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________________ आठवां अध्ययन - चौथा उद्देशक - उपधि की मर्यादा २७३ । 那麼來參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參事 सूयगडांग सूत्र के ७ वें अध्ययन की गाथा २१ का उद्धरण देकर अभिधान राजेन्द्र कोष भाग ७ पृष्ठ ११४६ 'सेयंवर' शब्द में दिया है। वहां स्पष्ट लिखा है कि - ___ "इत्यत्र प्रासुकोदकेनापि क्षार (साबुन) आदिना वस्त्रधावने साधुनां कुशीलित्वं टीकाकारेण भणितमिति स्वच्छंदं तदाचरन्तः कुशीलिनः शुद्ध जैनधर्म प्रतिकूला एवेत्यलं बहुना" अर्थात् - साबुन और सोड़ा काम में लेने वाला साधु कुशीलिया है और वह शुद्ध जैन धर्म के प्रतिकूल है। विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं।। संसार सायरे घोरे, जेणं पडइ दुरुत्तरे॥ (दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ६ गाथा ६६) इस सूत्र में वस्त्र रंगने का भी निषेध किया है। इसका यह आशय है कि कपड़े के नील, टिनोपाल आदि किसी प्रकार का रंग न लगावे। (४२२) . - अह पुण एवं जाणेजा, उवाइक्कं ते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरिजुण्णाई वत्थाई परिट्ठवेजा अहापरिजुण्णाई वत्थाई परिहवेत्ता अदुवा संत्तरुत्तरे, अदुवा ओमचेले, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे, तवे से अभिसमण्णागए भवइ। जमेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमेच्चा, सव्वओ सव्वत्ताए सम्मत्तमेव समभिजाणिया। ___कठिन शब्दार्थ - हेमंते - हेमन्त ऋतु, उवाइक्कंते - बीत गई है, गिम्हे - ग्रीष्म . ऋतु, पडिवण्णे - आ गई है, अहापरिजुण्णाई - यथापरिजीर्ण, परिट्ठवेज्जा - परित्याग कर देवे, संतरुत्तरे - पहने या पास में रखे, एगसाडे - एक ही वस्त्र रखे, अचेले - अचेलक - वस्त्र रहित, लाघवियं - लाघवता को, आगममाणे - वस्त्र त्याग करे, अभिसमण्णागए - अभिसमन्वागत - सम्मुख होता है, सव्वत्ताए - सर्वआत्मतया, सम्मत्तमेव - सम्यक्त्व या समभाव को, समभिजाणिज्जा - सम्यक् प्रकार से जाने, सेवन करे। . भावार्थ - जब साधु यह जान ले कि हेमन्त ऋतु बीत गयी है और ग्रीष्म ऋतु आ गयी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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