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________________ आठवां अध्ययन - तृतीय उद्देशक - अग्निकाय का सेवन अनाचरणीय २६६ 鄉鄉事本來來來來來來來來來參參參參參參參參那那那那那那那那那那那那 विणयण्णे समयण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाइ अपडिण्णे दुहओ छेत्ता णियाइ। . कठिन शब्दार्थ - संणिहाणसत्थस्स - सन्निधान शास्त्र - कर्म के स्वरूप का निरूपक शास्त्र का अथवा सन्निधान शस्त्र - कर्म का विघातक संयम रूपी शस्त्र का, कालेणुट्ठाइ - कालेनोत्थायी - काल से उठने वाला, समय पर कार्य करने वाला, अपडिण्णे - प्रतिज्ञा रहित, छेत्ता - छेदन करके, णियाइ - निश्चित रूप से संयमानुष्ठान में संलग्न रहता है अर्थात् संयम में निश्चिंत होकर जीवन यापन करता है। भावार्थ - जो साधु सन्निधान शास्त्र अथवा सन्निधान शस्त्र का ज्ञाता (मर्मज्ञ) है वह दोष युक्त आहार ग्रहण नहीं करता है। वह कालज्ञ-अवसर को जानने वाला, बलज्ञ - बल को जानने वाला, मात्रज्ञ - .मात्रा (परिमाण) को जानने वाला, क्षणज्ञ - क्षण को जानने वाला, विनयज्ञ - विनय का जानकार, समयज्ञ - स्व-पर सिद्धान्त का ज्ञाता होता है। वह परिग्रह पर ममत्व न करने वाला, उचित समय पर कार्य करने वाला, किसी प्रकार की मिथ्या आग्रह युक्त प्रतिज्ञा या निदान से रहित, राग और द्वेष के बंधनों को छेदन करके निश्चिंत होकर नियमित रूप से संयमी जीवन यापन करता है। अग्निकाय का सेवन अनाचरणीय (४१६) . - तं भिक्खुं सीयफासपरिवेवमाणगायं उवसंकमित्तु गाहावई बूया, “आउसंतो समणा! णो खलु ते गामधम्मा उब्बाहंति आउसंतो गाहावई! णो खलु मम गामधम्मा उब्बाहंति सीयफासं च णो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए। णो खलु मे कप्पइ अगणिकायं उज्जालेत्तए पजालेत्तए वा कायं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा, अण्णेसिं वा वयणाओ। ... कठिन शब्दार्थ - सीयफासपरिवेवमाणगायं -- शीत के स्पर्श से कांपते हुए शरीर वाले, गामधम्मा - ग्रामधर्म (इन्द्रिय विषय), उब्बाहंति - पीड़ित कर रहे हैं, उज्जालित्तए - उज्ज्वलित करना - किंचित् जलाना, पज्जालित्तए - प्रज्वलित करना - विशेष रूप से जलाना. . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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