SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 888888888888888888888 RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR आयावित्तए - किंचित् ताप देना - तपाना, पयावेत्तए - विशेष रूप से तपाना, वयणाओ - वचन से। भावार्थ - शीत स्पर्श से (ठण्ड के मारे) कांपते हुए शरीर वाले उस साधु के पास आकर कोई गाथापति कहे - हे आयुष्मन् श्रमण! क्या आपको ग्रामधर्म - इन्द्रिय विषय तो पीड़ित नहीं कर रहे हैं तो साधु उत्तर देवे कि हे आयुष्मन् गाथापति! मुझे ग्रामधर्म पीड़ित नहीं कर रहे हैं किंतु मैं शीत स्पर्श को सहन करने में समर्थ नहीं हूं। अग्निकाय को उज्ज्वलित या प्रज्वलित करना, उससे शरीर को थोड़ा या विशेष तपाना तथा दूसरों से कह कर ऐसा करवाना मुझे नहीं कल्पता है यानी मेरे लिए अकल्पनीय है। (४२०) सिया से एवं वयंतस्स परो अगणिकायं उजालेत्ता पजालेत्ता कायं . आयावेजा वा पयावेजा वा, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणविजा, अणासेवणाए त्ति बेमि। ॥अटुं अज्झयणं तइओद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - वयंतस्स - बोलने पर, परो - पर-अन्य पुरुष (गृहस्थ), अगणिकायंअग्निकाय को। भावार्थ - कदाचित् वह गृहस्थ उपर्युक्त प्रकार से कहते हुए उस साधु के लिए अग्निकाय को उज्ज्वलित-प्रज्वलित करके साधु के शरीर को थोड़ा तपाए या विशेष रूप से तपाए तो साधु अग्निकाय का अपनी बुद्धि से विचार कर, आगम के द्वारा भलीभांति जान कर उस गृहस्थ से कहे कि इस प्रकार अग्निकाय का सेवन करना मुझे नहीं कल्पता है, अग्नि का सेवन मेरे लिए असेवनीय है। - ऐसा मैं कहता हूं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में किसी भावुक गृहस्थ की शंका का सम्यक् समाधान करते हुए स्पष्ट किया गया है कि तीन करण तीन योग से सावध पापों के त्यागी साधु के लिए अग्निकाय का सेवन अनाचरणीय है। ॥ इति आठवें अध्ययन का तीसरा उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy