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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) *****************888888®®®®RRRRRRRRRRRRR .
भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया कि - इस लोक में किन्हीं (कुछ) प्राणियों को यह संज्ञा (ज्ञान) नहीं होती। जैसे - मैं पूर्व दिशा से आया हूं अथवा दक्षिण दिशा से आया हूं अथवा पश्चिम दिशा से आया हूं अथवा उत्तर दिशा से आया हूँ अथवा ऊर्ध्व (ऊंची) दिशा से आया हूँ अथवा अधो (नीची) दिशा से आया हूँ अथवा अन्य किसी दिशा से या अनुदिशा से आया हूँ।
इसी प्रकार कुछ प्राणियों को यह ज्ञात नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक - भिन्नभिन्न गतियों में उत्पन्न होने वाली है अथवा नहीं? मैं पूर्व जन्म में कौन था? मैं यहां से च्युत हो
कर - इस शरीर से छूट कर दूसरे जन्म में क्या होऊंगा? . विवेचन - संज्ञा का अर्थ है - चेतना। इसके दो भेद हैं -
१. ज्ञान चेतना - विशेष बोध। ज्ञान चेतना किसी में कम विकसित होती है और किसी में अधिक। ज्ञान चेतना के नियुक्ति ३८ में पांच भेद कहे हैं - १. मति २. श्रुत ३. अवधि ४. मनःपर्यव और ५. केवलज्ञान चेतना।
२. अनुभव-चेतना - अनुभव चेतना (संवेदन) प्रत्येक प्राणी में होती है। आचारांग टीका में अनुभव चेतना के सोलह भेद इस प्रकार बताये हैं - १. आहार २. भय ३, मैथुन ४. परिग्रह ५. सुख ६. दुःख ७. मोह ८. विचिकित्सा ६. क्रोध १०. मान ११. माया १२. लोभ १३. शोक १४. लोक १५. धर्म एवं १६. ओघ संज्ञा। ... आत्मा (जीव) का वर्तमान अस्तित्व तो सभी स्वीकार करते हैं किंतु अतीत (पूर्व जन्म)
और अनागत (भविष्य-पुनर्जन्म) के अस्तित्व में सभी विश्वास नहीं करते हैं। जो आत्मा की । त्रैकालिक सत्ता में विश्वास रखते हैं वे 'आत्मवादी', कहलाते हैं। प्रबल ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से यद्यपि बहुत से आत्मवादियों में भी अपने पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती कि मैं यहां (इस लोक में) किस दिशा या विदिशा से आया हूं? मैं पूर्व जन्म में कौन था? तथा उन्हें भविष्य का यह ज्ञान भी नहीं होता कि मैं यहां से आयुष्य पूर्ण कर कहां जाऊंगा? आगे क्या होऊंगा? इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म संबंधी ज्ञान-चेतना का वर्णन किया गया है।
प्रज्ञापना सूत्र में १८ प्रकार की द्रव्य दिशाएं और अठारह प्रकार की भाव दिशाएं कही हैं जो इस प्रकार है - - १. द्रव्य दिशाएं - जिधर सूर्य उदय होता है उसे पूर्व दिशा कहते हैं। जिधर सूर्य अस्त होता है उसे पश्चिम दिशा कहते हैं। इस प्रकार पूर्व आदि चार दिशाएं, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य
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