________________
-
❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀❀
२. प्रत्याख्यान परिज्ञा अर्थात् कर्म बन्ध के कारणों को जान कर उनका त्याग करना । इस अध्ययन में भाव शस्त्रों की परिज्ञा अर्थात् जानकारी है।
एक अध्ययन में आये हुए नवीन विषय के प्रारम्भ को 'उद्देशक' कहते हैं। प्रथम अध्ययन में सात उद्देशक हैं।
टीका में 'आउ तेणं' शब्द के दो पाठान्तर भी मिलते हैं - आवसंतेणं एवं आमुसंतेणं । क्रमशः उनका भाव है - 'भगवान् के निकट में रहते हुए तथा उनके चरणों का स्पर्श करते हुए ' मैंने यह सुना है। इससे यह सूचित होता है कि श्री सुधर्मास्वामी ने यह वाणी भगवान् महावीर स्वामी से साक्षात् उनके निकट रह कर सुनी है।
आत्म-बोध (२)
इहमेगेसिं णो सण्णा भवइ, तंजहा - पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि ? दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि? अहे दिसांओ वा आगओ अहमंसि ? अण्णयरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि ? एवमेगेसिं णो णायं भवइ, अत्थि में आया उववाइए णत्थि मे आया उववाइए के अहं आसि ? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ।
-
किसी एक,
कठिन शब्दार्थ नहीं, इहं - इस लोक में, एगेसिं - किन्हीं प्राणियों को, णो सण्णा संज्ञा (ज्ञान), भवइ होती है, पुरत्थिमाओ - पूर्व, दिसाओ - दिशा से, आगओ सि आया हूँ, अहं - मैं, दाहिणाओ - दक्षिण, पच्चत्थिमाओ - पश्चिम, उत्तराओ उत्तर, उड्डाओ - ऊंची, अहे - नीची, अण्णयरीओ - अन्यतर अणुदिसाओ - अनुदिशा (विदिशा) से, अत्थि - है, मे - मेरी, आया आत्मा, उववाइएऔपपातिक - जन्म धारण करने वाली, णत्थि - नहीं हैं, के कौन, आसी - था, इओ इस, चुओ- च्युत होकर छूट कर, पेच्चा - दूसरे जन्म में, भविस्सामि - होऊंगा ।
Jain Education International
प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक ⠀ ⠀e as aƒ ƒ ale aj
-
-
आत्म. बोध
-
३
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org