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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRRRRRRealese
88888888 # Re RRB . साथ ही उसे साधु की कल्प मर्यादाओं से अवगत करा कर दोष युक्त आहारादि को ग्रहण न करे और उस उपाश्रय आदि में न रहे।
___ (४०८) से भिक्खू परक्कमेज वा जाव हुरत्था वा कहिं चि विहरमाणं तं भिक्खें उवसंकमित्तु गाहावई आयगयाए पेहाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई ४ जाव
आहटु चेएइ आवसहं वा समुस्सिणाइं तं भिक्खं परिघासिउं, तं च भिक्खू जाणेजा सह सम्मइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा “अयं खलु गाहावई! मम अट्ठाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई वा ४ समारब्भ जाव चेएइ आवसहं वा समुस्सिणाइ तं च भिक्खू संपडिलेहाए आगमेत्ता आणवेजा अणासेवणाए त्ति बेमि। ___कठिन शब्दार्थ - आयगयाए पेहाए - अपने मन की इच्छा से मैं अवश्य दूंगा, इस अभिप्राय से, परिघासिउं - आहार लाने के लिये गया हुआ, सहसम्मइयाए - अपनी सद्बुद्धि से, परवागरणेणं - दूसरों के उपदेश से अथवा तीर्थंकरों की वाणी से, आगमित्ता - अच्छी तरह जान कर, आणवेज्जा - आज्ञा दे, कहे, अणासेवणाए - सेवन करने योग्य नहीं।
भावार्थ - वह साधु कहीं जा रहा हो अथवा श्मशान आदि में स्थित हो यावत् अन्यत्र कहीं विहार कर रहा हो उस समय उस साधु के पास आकर कोई गाथापति अपने मनोगत भावों को प्रकट किए बिना “मैं साधु को अवश्य ही दान दूंगा” इस अभिप्राय से प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों का आरंभ करके अशनादि तैयार करता है अथवा साधु के उद्देश्य से खरीद आदि कर यावत् सामने लाकर देना चाहता है मकान बनवाता है या जीर्णोद्धार करवाता है तो साधु के लिए किये गये उस समारंभ को अपनी स्व बुद्धि से या दूसरों के उपदेश से अथवा तीर्थंकर के वचनों से अथवा दूसरों से सुन कर यह जान लेवे कि इस गाथापति ने मेरे लिए प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों का समारंभ करके अशनादि तथा वस्त्र पात्रादि बनवाये हैं यावत् मकान का जीर्णोद्धार करवाया है तो साधु उसकी सम्यक् पर्यालोचना करके, आगम में कथित आदेश से या 'पूरी तरह जान कर उस गाथापति को स्पष्ट कह दे कि ये सब पदार्थ मेरे लिए सेवन करने योग्य नहीं है इसलिये मैं इन्हें स्वीकार नहीं करता हूँ। इस प्रकार मैं कहता हूं।
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