________________
२६०
आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8 88888888888888888888888888888888808888888888888 साधु के लिए अनाचरणीय और अकल्पनीय
(४०६) . से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिटेज वा, णिसीएज वा, तुयट्टेज वा, सुसाणंसि वा, सुण्णागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभाराययणंसि वा, हुरत्था वा कहिं चि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावई बूया आउसंतो समणा! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा, पाणाई भूयाई जीवाई, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं, पामिच्चं अच्छिज्जं अणिसटुं, अभिहडं आहट्ट चेएमि, आवसहं वा समुस्सिणामि, से भुंजह, वसह।
कठिन शब्दार्थ - परक्कमेज - विहार करता हो, भिक्षादि किसी कार्य के लिए कहीं जा रहा हो, चिट्टेज - खडा हो, णिसीएज्ज - बैठा हो, तुयट्टेज - सोता हुआ हो, सुसाणंसि - श्मशान में, सुण्णागारंसि - शून्य घर में, गिरिगुहंसि - पर्वत की गुफा में, रुक्खमूलंसि - वृक्ष के नीचे, कुंभाराययणंसि - कुम्भारशाला में, हुरत्था - गांव के बाहर अन्यत्र, विहरमाणं - विहार करते हुए, उवसंकमित्तु - समीप आकर, समारब्भ - समारम्भ करके, समुहिस्स - आपके उद्देश्य से, कीयं - क्रीत - खरीद कर, पामिच्चं - प्रामित्य-उधार लेकर, अच्छे - आच्छिद्य. - किसी से छीन कर, अणिसटुं - अनिसृष्ट - दूसरों की वस्तु को उसकी बिना अनुमति से लेकर, अभिहडं - अभिहृत - सामने लाया हुआ, चेएमि - देता हूँ, आवसहं - आवसथ - उपाश्रय, मकान, समुस्सिणामि - बनवा देता हूँ, जीर्णोद्धार करवा देता हूँ, भुंजह - भोगो, वसह - रहो।
भावार्थ - सावध कार्यों से निवृत्त वह भिक्षु किसी कार्यवश कहीं जा रहा हो, श्मशान में, शून्य घर में, पर्वत की गुफा में, वृक्ष के नीचे, कुम्भारशाला में अथवा गांव के बाहर अन्यत्र कहीं खड़ा हो, बैठा हो, लेटा हुआ हो अथवा कहीं भी विहार कर रहा हो उस समय कोई गाथापति उस भिक्षु से आकर कहे - 'हे आयुष्मन् श्रमण! मैं आपके लिए अशन, पानी, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादप्रोंच्छन, प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का आरम्भ करके आपके उद्देश्य से बनवा देता हूँ अथवा आपके लिए खरीद कर, उधार लेकर, किसी से छीन कर, दूसरे की वस्तु को उसकी स्वीकृति के बिना लाकर या आपके सामने अन्यत्र से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org