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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) Sadee RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE
५. ये कष्ट समभाव से सहन किये जाने पर एकांततः कर्मों की निर्जरा होगी।
उपरोक्तानुसार चिंतन करता हुआ मुनि समभावों से परीषहों को सहन करे और संयम में विचरण करे।
भावनग्न
(३५५) एए भो णगिणा वुत्ता, जे लोयंसि अणागमणधम्मिणो।
कठिन शब्दार्थ - णगिणा - भाव नग्न, अणागमणधम्मिणो - अनागमनधर्मी - दीक्षा लेकर गृहवास में नहीं लौटने वाले।
भावार्थ - हे शिष्य! लोक में उन्हीं को भावनग्न कहा गया है जो अनागमन धर्मी - दीक्षित होकर पुनः गृहवास में नहीं आते हैं।
(३५६) "आणाए मामगं धम्म" एस उत्तरवाए इह माणवाणं वियाहिए।
कठिन शब्दार्थ - आणाए - आज्ञानुसार, मामगं - मेरा, माणवाणं - मनुष्यों के लिए, उत्तरवाए- उत्कृष्टवाद।
भावार्थः - आज्ञा में मेरा (तीर्थंकर का) धर्म हैं। यह इस लोक में मनुष्यों के लिए उत्कृष्ट वाद (सिद्धान्त) कहा गया है।
विवेचन - तीर्थंकर भगवान् की आज्ञानुसार संयम का पालन करने वाले जो पुरुष सब प्रकार के परीषह उपसर्गों को समभाव से सहन करते हैं और परिग्रह से रहित होते हैं, वे पुरुष भाव नग्न कहे गये हैं।
.. (३५७) एत्थोवरए तं झोसमाणे, आयाणिजं परिण्णाय परियाएण विगिंचइ। - कठिन शब्दार्थ - एत्थोवरए - इस कर्म क्षय के उपाय, संयम में रत विषयों से उपरत, झोसमाणे - क्षय करता हुआ, आयाणिजं - आदानीय - कर्मों के स्वरूप को, परियाएण - संयम पर्याय से, विगिंचइ- नष्ट करता है।
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