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________________ पांचवाँ अध्ययन - पांचवां उद्देशक - परिणामों की विचित्रता २०७ 染率部举密部部密密密密密密密密密密密密密密部举***率部參參參參參參參參參參參參參參參參參密密部部 करने के बाद असम्यक् मानने लगता है। कोई जिनोक्त तत्त्व को पहले असम्यक् मानता हुआ भी बाद में सम्यक् मानने लगता है। कोई साधक जिनोक्त तत्त्व को पहले असम्यक् (मिथ्या) मानता हुआ पीछे भी असम्यक् ही मानता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में परिणामों की विचित्रता बतलाई गई है। वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान् ने जो फरमाया है वह सत्य है और शंका रहित है। इस प्रकार की मान्यता को रख कर जो पुरुष प्रव्रज्या अंगीकार करता है उस पुरुष के प्रव्रज्या के बाद वह मान्यता अधिक हो सकती है अथवा ज्यों की त्यों रह सकती है अथवा कम हो जाती है या बिलकुल नष्ट भी हो सकती है। इस प्रकार परिणामों की विचित्रता को बतलाने के लिए चौभंगी बतलाई गई है - .. १. प्रव्रज्या के समय किसी पुरुष की “वही सत्य और निःशंक हैं जो सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान् ने फरमाया है" ऐसी सम्यक् श्रद्धा, होती है और पीछे भी सम्यक् ही श्रद्धा रहती है। २. किसी की श्रद्धा प्रव्रज्या के समय तो सम्यक् होती है किंतु पीछे असम्यक् - मिथ्या हो जाती है। - ३. किसी पुरुष की श्रद्धा पहले तो असम्यक् (मिथ्या) होती है किंतु प्रव्रज्या के बाद उसकी श्रद्धा सम्यक् हो जाती है। ४. किसी पुरुष की श्रद्धा पहले भी असम्यक् होती है और पीछे भी असम्यक् ही रहती है। .... (३१६) समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होइ उवेहाए। कठिन शब्दार्थ - उवेहाए - उत्प्रेक्षा - सम्यक् पर्यालोचन रखता है। भावार्थ - जिनोक्त तत्त्व को सम्यक् (सत्य) मानते हुए पुरुष को चाहे वह पदार्थ सम्यक् हो या असम्यक् हो किंतु उसकी सम्यक् उत्प्रेक्षा होने के कारण उसके लिए सम्यक् ही है। (३१७) असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होइ उवेहाए। भावार्थ - जो साधक जिनोक्त तत्त्व को असम्यक् मान रहा है वह सम्यक् हो या असम्यक् उसके लिए असम्यक् उत्प्रेक्षा होने के कारण वह असम्यक् ही है। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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