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पांचवाँ अध्ययन - तृतीय उद्देशक - आंतरिक युद्ध
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भावार्थ - वह संयम रूप धन का स्वामी मुनि समस्त पदार्थों का विशिष्ट ज्ञान रखने वाली अपनी आत्मा से नहीं करने योग्य उस पाप कर्म का अन्वेषण न करे अर्थात् पाप कर्म का आचरण न करे।
(३०१) जं सम्मं ति पासहा तं मोणं ति पासहा, जं मोणं ति पासहा तं सम्म ति पासहा।
कठिन शब्दार्थ - सम्म - सम्यक् (सम्यक्त्व, सत्यत्व), मोणं - मौन - संयमानुष्ठान, पासह - देखो।
भावार्थ - जो सम्यक् (सम्यक्त्व, सत्यत्व) को देखता है वह मुनित्व (संयम) को देखता है और जो मुनित्व को देखता है वह. सम्यक् को देखता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सम्यक् से रत्नत्रयी - सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र का ग्रहण और मौन - मुनित्व से संयम का ग्रहण किया गया है। जहां रत्नत्रयी होगी वहां मुनित्व (संयम) होगा और जहां संयम है वहां रत्नत्रयी अवश्य होगी।
(३०२) श. इमं सक्कं सिढिलेहिं अद्दिजमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं।
कठिन शब्दार्थ - सक्कं - शक्य, सिढिलेहिं - शिथिल - संयम और तप में दृढ़ता से रहित, अद्दिज्जमाणेहिं - पुत्रादि के स्नेह से आई - अनुरक्त, गुणासाएहिं - शब्दादि विषयों के स्वाद में आसक्त, वंकसमायारेहिं - वक्राचारी (मायावी), पमत्तेहिं - प्रमादी, गारमावसंतेहिंगृहवासी - गृहस्थ भाव अपनाए हुए। __ भावार्थ - उन साधकों द्वारा संयम पालन शक्य नहीं है जो शिथिल हैं, पुत्रादि से स्नेह युक्त हैं, शब्दादि विषयों के स्वाद में आसक्त हैं, वक्राचारी हैं, प्रमादी हैं और गृहवासी - गृहस्थ भाव अपनाए हुए हैं।
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