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________________ [21] २१८ २२१ १८६ । १६२ २२८ क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय पृष्ठ ११४. कामभोगों का त्याग १७८ धूताख्य नामक छठा ११५. अप्रशस्त (एकाकी) चर्या के दोष १८० अध्ययन २१८-२५१ द्वितीय उद्देशक प्रथम उद्देशक ११६. अनारंभ जीवी १३५. आत्मज्ञान से शून्य मनुष्यों. ११७. अप्रमाद का त्याग १८३ की दशा ११८. सम्यक् प्रव्रज्या १८३ १३६.. कृत कर्मों का फल ११६. परिग्रह की भयंकरता १८६ १३७. भाव-अंधकार २२३ १२०. परिग्रह त्याग का उपदेश १८६ १३८. लोक में भय २२४ .. . तृतीय उद्देशक १३६. सावद्य-चिकित्सा त्याग २२५ १२१. अपरिग्रही कौन? . १४०. धूत बनने की प्रक्रिया २२५ १२२. धर्म स्थिरता के सूत्र १९१ द्वितीय उद्देशक १२३. आंतरिक युद्ध १४१. चारित्र भ्रष्टता के कारण - चौथा उद्देशक १४२. संयमी के लक्षण २२६ १२४. दोष युक्त एकल विहार १४३. भाव नग्न २३२ १२५. परिणाम से बंध १९६ १४४. एकल विहार प्रतिमाधारी २३३ १२६. स्त्री संग एवं विषयों की उग्रता तृतीय उद्देशक .. पांचवां उद्देशक १४५. द्रव्य और भाव लाघवता . . २३५ १२७. आचार्य की महिमा । चतुर्थ उद्देशक १२८. विचिकित्सा का परिणाम १२६. विचिकित्सा को दूर करने १४६. ज्ञान ऋद्धि का गर्व . २३६ १४७. दोहरी मूर्खता २४० का उपाय २४३ १३०. परिणामों की विचित्रता १४८. अंहकारी की कुचेष्टाएं १३१. हिंसा से निवृत्ति का उपदेश २०६ - पांचवां उद्देशक १३२. आत्म-लक्षण | १४६. धर्मोपदेश क्यों, किसको . छठा उद्देशक और कैसे? २४६ १३३. आज्ञा-पालन २११ | महापरिज्ञा नामक सातवां १३४. मुक्तात्मा का स्वरूप २१५ | अध्ययन विच्छिन्न २५२ २०३ २०५ २०५ २०६ २१० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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