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________________ १२४ १२७ १६०. [20] 88888888880000000000000000000000000000 क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय ७२. दुःख मुक्ति का उपाय ११९ | सम्यक्त्व नामक चौथा ७३. दुःखों का मूल-आरंभ १२२ | अध्ययन १५१-१७४ ७४. कर्मों से उपाधि प्रथम उद्देशक द्वितीय उद्देशक ६६. अहिंसा धर्म का निरूपण . १५१ ७५. बंध और मोक्ष ६७. धर्माचरण . .. १५४ ७६. संयमी आत्मा की विशेषताएं १३० १८. लोकैषणा-त्याग १५५ ७७. असंयत की चित्तवृत्ति १३२ | द्वितीय उद्देशक . ७८. विषयभोगों की निःसारता १३३ | EE. आस्रव-परिस्रव १५६ ७६. हिंसा का पाप .. १३४ | १००. अनास्रव-अपरिस्रव १५७ ८०. कषायों की भयंकरता . १०१. मृत्यु निश्चित है ... १५६ ८१. पापों से विरत रहने की प्रेरणा १३५ | १०२. अनार्य का सिद्धान्त तृतीय उद्देशक १०३. आर्य का सिद्धान्त ::१६१ ८२. प्रमाद-त्याग तृतीय उद्देशक ८३. अहिंसा-पालन १३७ / १०४. दुःख, आरम्भं से १६४ ८४. आत्मा का अतीत और भविष्य । |१०५. तप का महत्त्व १६६ ८५. रति और अरति . |१०६. क्रोध (कषाय) त्याग १६७ ८६. तू ही तेरा मित्र चौथा उद्देशक ८७. आत्म-निग्रह | १०७. संयम में पुरुषार्थ १६८ ८८. सत्य ग्रहण की प्रेरणा | १०८. ब्रह्मचर्य की महिमा. १७० ८६. दुःखों से मुक्ति १४३ | १०६. मोह की भयंकरता १७० . चतुर्थ उद्देशक | ११०. सम्यक्त्व-प्राप्ति १७१ ६०. कषाय त्याग | लोकसार नामक पांचवां १४४ ६१. प्रमत्त-अप्रमत्त १४५ | अध्ययन १७४-२१७ ६२. कषाय-त्याग का फल १४६ | प्रथम उद्देशक ६३. शस्त्र-अशस्त्र १४७ | १११. कामभोगों की निस्सारता १७४ ६४. कषाय त्यागी की पहचान १४८ | ११२. अज्ञानी जीव की मोहमूढ़ता १७६ ६५. तीर्थंकरों का उपदेश १४६ / ११३. दोहरी मूर्खता १७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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