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चौथा अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - आर्य का सिद्धान्त
१६१ 888888 RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRREas geeta Rega 8888888 भूत और सभी सत्त्व हनने योग्य हैं, उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें परिताप पहुँचाया जा सकता है, उन्हें दास बना कर रखा जा सकता है, उन्हें प्राणरहित किया जा सकता है। इस विषय में ऐसा जान लो कि इस प्रकार की (धर्म के नाम पर की जाने वाले) हिंसा में कोई दोष नहीं है।" यह अनार्य का सिद्धान्त-कथन है।
आर्य का सिद्धान्त
(२४०) तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी-“से दुद्दिटुं च भे, दुस्सुयं च भे, दुम्मयं च भे, दुविण्णायं च भे, उढे अहं तिरियं दिसासु सव्वओ दुप्पडिलेहियं च भे, जं णं तुब्भे एवमाइक्खइ, एवं भासह, एवं पण्णवेह, एवं परूवेह सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता, हंतव्वा, अजावेयव्वा, परिघेत्तव्वापरियांवेयव्वा-उद्दवेयव्वा एत्थ वि जाणह णत्थित्थ दोसो।" अणारियवयणमेयं । - कठिन शब्दार्थ - दुद्दिढं - बुरी तरह से देखा हुआ - दोष युक्त देखा हुआ, दुस्सुयंदुःश्रुतं, दुम्मयं - दुर्मतं, दुविण्णायं - दुर्विज्ञातं, आइक्खह - कहते हो। ____ भावार्थ - इस विषय में जो आर्य पुरुष (पाप कर्मों से दूर रहने वाले) हैं उन्होंने ऐसा कहा है कि - ‘आपने दोष पूर्ण देखा है, दोष युक्त सुना है, दोष युक्त मनन किया है, दोष युक्त समझा है, ऊंची-नीची, तिरछी सभी दिशाओं में सर्वथा दोष पूर्ण होकर पर्यालोचन किया है, जो आप ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापन करते हैं, ऐसा प्ररूपण करते हैं कि सभी प्राण, सभी भूत, सभी जीव और सभी सत्त्व हनन करने योग्य हैं, उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें दास बनाया जा सकता है, उन्हें परिताप दिया जा सकता है, उनको प्राण रहित किया जा सकता है। इस विषय में ऐसा जानो कि इस प्रकार की हिंसा में कोई दोष नहीं है।' यह आपका कथन अनार्यों का वचन है।
(२४१) - वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं पण्णवेमो, एवं परूवेमो, “सव्वे पाणा, सव्वे जीवा, सव्वे भूया, सव्वे सत्ता, ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण
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