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________________ १६० आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) othese BRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRREeeeesa . कठिन शब्दार्थ - चिटुं - अत्यन्त, कूरेहिं - क्रूर, परिचिट्ठइ - निवास करता है। भावार्थ - अत्यंत क्रूर कर्म करने वाला पुरुष अत्यंत पीड़ाकारी स्थानों में उत्पन्न होता है। जो पुरुष अत्यंत क्रूर कर्म नहीं करता वह नरकादि प्रगाढ़ वेदना वाले स्थान में उत्पन्न नहीं होता है। (२३८) एगे वयंति अदुवावि णाणी, णाणी वयंति अदुवावि एगे। भावार्थ - चौदह पूर्वो के धारक (श्रुत केवली) या केवलज्ञानी ऐसा कहते हैं। केवलज्ञानी जैसा कहते हैं वैसा ही श्रुतकेवली भी कहते हैं। विवेचन - केवलज्ञानी भगवान् अथवा चौदहपूर्वधारी श्रुतकेवली फरमाते हैं कि इन्द्रियों के वशीभूत पुरुष पापकर्मों का फल भोगने के लिए नरकादि दुर्गतियों में बारबार जन्म धारण करते हैं और प्रगाढ़ दुःख भोगते हैं। . अनार्य का सिद्धान्त .. . (२३६) आवंती केयावंती लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवायं वयंति, “से दिटुं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड़े अहं तिरियं दिसासु सव्वओ सुपडिलेहियं च णे सव्वे पाणा, सव्वे जीवा, सव्वे भूया, सव्वे सत्ता हंतव्वा-अजावेयव्वा-परिघेत्तव्वा-परियावेयव्वा-उद्दवेयव्वा। एत्थं पि जाणह, णत्थित्थ दोसो।" अणारियवयणमेयं। कठिन शब्दार्थ - विवायं - विवाद - परस्पर विरुद्ध अपना सिद्धान्त, सुपडिलेहियं - सुप्रत्युपेक्षितं - भलीभांति निरीक्षण किया है, विचारा हुआ है, अणारियवयणमेयं - यह अनार्य वचन है। ___ भावार्थ - इस लोक में जितने भी जो भी श्रमण या ब्राह्मण हैं वे परस्पर विरोधी भिन्नभिन्न सिद्धान्त (मतवाद) कहते हैं। वे प्रतिपादन करते हैं कि - "हमने यह देख लिया है, सुन लिया है, मनन कर लिया है और विशेष रूप से जान लिया है, ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में सब तरह से भलीभांति पर्यालोचन कर लिया है कि सभी प्राणी, सभी जीव, सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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